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________________ अंतिम दिवस और मृत्यु १३७ इस प्रकार बी० ए० तक पढ़े हुए सत्यनारायणजी जैसे विद्वान् को २५) रु० मासिक की नौकरी । सौ भो बतौर जॉच के दी गई । इस पर टिप्पणी करने की आवश्यकता नही। बात असल में यह है कि सत्यनारायणजी इस क्रय-विक्रय मय संसार के सर्वथा अनुपयुक्त थे। 'मालती-माधव' की समाप्ति दिसम्बर १९१७ के प्रारम्भ से ही सत्यनारायणजी 'मालती-माधव" के अनुवाद-कार्य को पूर्ण करने में लगे हुए थे। इन्दौर-साहित्य-सम्मेलन के साहित्य-विभाग से भेजे गये एक पत्र के उत्तर मे उन्होने २ फर्वरी सन् १९१८ को लिखा था-- ___ "आजकल मै “मालती-माधव" नाटक का हिन्दी-अनुवाद करने मे व्यस्त हूँ, जो इसी अवसर पर निकल जाना चाहिये, क्योकि पजाबविश्वविद्यालय मे उसके नियुक्त हो जाने से अब अधिक विलम्ब करना दुस्साहस होगा । इसलिये शका है कि उक्त कारणवश निर्दिष्ट निबन्ध को वैयार कर यथासमय उपस्थित करने का कदाचित ही मुझे अवकाश मिले । आशा है, मेरी वर्तमान स्थिति पर ध्यान देते हुए आप मुझे क्षमा करेंगे। हाँ, मुझसे भी कही अधिक अच्छे झालरापाटन के पूज्य मित्र पं० गिरिधर शर्मा है । वह उक्त विषय पर अत्यन्त सुन्दर व रोचक लेख लिख सकते है । इस कारण उनके साहित्य के उन्नत परिज्ञान से लाभ उठाने के लिये आप की सेवा मे सादर सानुरोध प्रार्थना है। ७ फरवरी को सत्यनारायणजी ने अपने मित्र डाक्टर लक्ष्मीदत्त (फीरोजाबाद) को लिखा था - "श्रीमती आजकल हरिद्वार है । जब उनका पत्र आया है तब उसमें उन्होने अपनी तबियत ठीक ही बताई है । हाँ, यहाँ आने पर यदि उन्हें जैसी आशा है, रोग ने असा तो आपको अवश्य कष्ट दूंगा। आजकल "मालती-माधव" नाटक पर पिलाई है और आप के चरणो की कृपा से
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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