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पं० सत्यनारायण कविरत्न
खाना खाने के बाद जब खुरशैदअली-गुलेनार का शौहर-बाहरवाले महल में जाने लगा, तब ही लड़ाखड़ाकर जमीन पर गिर पड़ा और थोड़ी देर बाद मुंह से झाग देने लगा ... इत्यादि
पुस्तक हमने जहाँ को वहाँ रखदो और सोचने लगे-ऐसी पुस्तको से क्या लाभ ? इनसे क्या शिक्षा मिल सकती है ? इनका पाठको और पाठिकाओ पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? अस्तु, विषयान्तर हुआ जाता है । इन पहेलियो को सुलझाना तो साहित्य-समालोचको का कर्तव्य है। हम तो यहाँ जीवन-चरित्र लिख रहे है । हमे इनसे क्या प्रयोजन ? इस अप्रिय विषय को यही छोड़िये और मेरे साथ "कोरे सत्य-ग्राम के बासी" के अन्तिम दिवस और मृत्यु का हृदय-वेधक वृत्तान्त पढिये ।