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गृह-जीवन
| ओ३म् ।*
एक रात मे चालीस खून |
अहह ? क्या तुम जानते हो मै किस मिट्टी को बनी हूँ ? अगर मेरा नाम लेनार है तो तुम देख लेना कि मै क्या करती हूँ । क्या रहमान तुम मेरे साथी बन सकते हो ? याद रखो अगर तुमने मेरा साथ दिया तो मै तुमको खुश कर दूँगी । नही मै तुम्हारी जान की भी गाहक हो जाऊँगी ।
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रहमान - क्या तुम इस नाचीज सल्तनत के लिये अपने शौहर की जान लोगी ? क्या तुम्हारी इच्छा मलका बनने की है ?
गुलेनार - जरूर जरूर उसके बुरे बर्ताव का फल उसको चखाये बगैर नही रहूँगी ।
रहमान -- मेहरबान, अपके साथ उन्होने क्या बुरा बर्ताव किया है जिसका बदला तुम जान से चुकाओगी ?
गुलेनार --- मुझे इस वक्त कुछ कहने का मौका नही है । इस वक्त तो केवल तुम मरते दम तक मेरे साथ होना चाहते हो ?
रहमान - मुझे आपकी बातों मे कब उजर है। मै बसरो चश्म आपके कहने के मुताबिक आपके साथ अपनी जान देने को तैयार हूँ ।
गुलेनार ( हँसकर ) --- मुझको तुमसे जैसी उम्मेद थी तुमने वैसा हो जवाब दिया है । क्या तुमने जो कुछ कहा, वह सच कहा ?
रहमान - क्या मैंने आज तक कोई बात आपसे झूठी कही है ? जिस वक्त जो हुक्म आप फरमावेगी बदा उसी वक्त उसकी तामील करेगा ।
गुलेनार ने रहमान को इस तरह अपनी ओर कर एक रात को मौका पाकर अपने शौहर के खाने मे जहर मिला दिया ।
* 'ओ३म्' बिचारा भी कहाँ आकर फँसा है । लेखक ।