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________________ गृह-जीवन १२९ यदि' कभी सम्भव हुआ तो आपकी मनोवोधिनी मोहनी मयूर-मालामयी सरस घनश्यामला झरनोन्मुखी उत्तुग स्थिता कुटी मे प्रवेश करने का सकल्प-प्रयास किया जायगा । शेष फिर कभी । देर मे निवेदन करने के लिये क्षमा ! "चतुर्वेदी" के लिये लेख नही भेजा? आपका सत्यनारायण "जाना था उसे सहृदया किन्तु निकली जड की जड !" इन शब्दों में सत्यनारायणजी के गृह-जीवन की सारी कथा का सार आ गया है । २५।४।१६ को सत्यनारायणजी ने आगरे मे एक कागज पर कविता लिखना प्रारम्भ किया था 'भेड़ जो लाये ऊन को चरने लगी कपास' उन्ही दिनों पण्डितजी के एक घनिष्ट मित्र ने प० पद्मसिंहजी शर्मा को लिखा थाश्रीमान् पं० पद्मसिहजी, प्रणाम छोटी लड़की 'खेल-तमाशा" मे से पढ रही थी--- आरे सुग्गा आरे सुग्गा बैठ हाथ पर आ मेरे। अच्छी चीज छोड़ के कैसे वृक्ष पसन्द हुआ तेरे । रोज़ तुझे हम ताजे-ताज़े मेवे फल खिलवावेगे। .. दाख-चिरोजी जामन लीची बेर का मजा चखावेगे॥ - परन्तु दाख-चिरजी को छोड़ और तिरस्कार करके सुग्गा का जवाब है : है मेरी प्यारी लड़की है प्यार बड़ा बेशक तेरा। । पर जङ्गली बृक्ष ने कैसा मोह लिया है मन मेरा ।।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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