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विवाह "श्री गोस्वामीजी महाराज,
प्रणाम, कृपा-कार्ड आपका मिला। मै दस-बारह दिन से पं० मुकुन्दरामजी से नही मिल सका। आज उनसे मिलकर मालूम करूँगा कि उनके विचारपरिवर्तन का मुख्य कारण क्या है। मै तो ससार-भर के वर पुरुषो पर श्रीसत्यनारायणजी को "तर्जीह" देता हूँ। जहाँ तक मेरी शक्ति मे है, मुकुन्दरामजी को समझाऊँगा। उन्हे कई अनिवार्य कारणो से जल्दी तो बेशक बहुत है। क्या माघ से पूर्व आप वर महोदय को किसी प्रकार भी तैयार नही कर सकते ? विशेष तैयारी की जरूरत नहीं है। आप पूरा प्रयत्न कीजिये कि माघ से पूर्व ही यह कार्य सम्पन्न हो जाय । मैं मुकुन्दराम को समझाता हूँ।
भवदीय
पद्मसिह शर्मा इसके बाद क्या हुआ, उसका पता पं० पद्मसिंह शर्मा के २१।१२।१५ के पत्र से लगता है । शर्माजी ने सत्यनारायणजी को लिखा था:
"आशा है, आप इधर आने की तयारी मे लगे होगे। पं० मुकुन्दरामजी ने अपने पत्र मे तिथि को सूचना आप को दे दी है। तदनुसार यथासमय आप अपने सहचर वर्ग सहित दर्शन देंगे, इसमे तो सन्देह नहीं । श्रीगोस्वामीजी का एक कृपा-कार्ड मिला था। उसके उत्तर मे मै दो पत्र भेज चुका हूँ। आशा है, वे उन्हे मिलेगे। फिर उन्होने (जैसा कि अपने पत्र मे इच्छा प्रकट को थी) कुछ पूछा नहीं। कोई बात ऐसी हो तो साफ करली जाय । इतना फिर निवेदन है कि किसी बात मे भी तकल्लुफ या संकोच को जरा भी जरूरत नही है। जिस प्रकार इच्छा हो, पधारिये।।
बरात भी 'जस दूल्हा तस सजी बराता" के अनुरूप ही होनी चाहिये-बस इने-गिने दस-पाँच साहित्य-सेवी