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________________ विवाह जी के साथ ही पं० पद्मसिंहजी तथा आपके आग्रह पर सम्बन्ध स्वीकार कर लिया है। परन्तु इतनी बात अवश्य है कि हम देर तक ठहर किसी प्रकार भी नही सकेगे। हम विवाह की तिथि निश्चय करा के शीघ्र ही भेजनेवाले है । यथा सम्भव जो भी तिथि नियत हो सकेगी, की जावेगी। आप सब तैयारी करे । हम बडी धूमधाम नही चाहते । साधारण तौर पर कार्य करे । परन्तु पौष के अन्त अथवा माघ के प्रारम्भ मे विवाह करना अवश्य ही पडेगा, यह पूरा-पूरा प्रबन्ध रक्खे। इसी शर्त पर वाग्दान को भेजा भी गया था। हमारी यही शर्त पत्रो मे भी थी। हमने शीघ्र ही विवाह करनेवाले सम्बन्ध को आपकी स्वीकारी पर बन्द किया है।" इसके ४-५ दिन बाद ही चतुर्वेदी अयोध्याप्रसादजी पाठक के पास भी मुकुन्दरामजी ने एक पत्र भेजा जिसमे लिखा था___“यदि वे (सत्यनारायण) मार्गशीर्ष मे विवाह करने के लिये तैयार हो सके तो वागदानवाला मनीआर्डर ले ले। अन्यथा हमे उनकी आशा छोडकर कोई दूसरा वर ही निश्चय करना पड़ेगा । हम मार्गशीर्ष से आगे किसी प्रकार भी विवाह को हटाने को तैयार नहीं है।" ___इन पत्रो के उत्तर मे सत्यनारायणजी ने ६।११।१५ को निम्नलिखित पत्र भेजा थाभगवन्, ___ गोस्वामी ब्रजनाथजी द्वारा कृपा-पत्र मिला। यदि उसे एक अश मे अल्टीमेटम कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी। सच जानिये, आपके सद्व्यवहार से विमोहित होकर मै आपकी सेवा मे आत्मसमर्पण कर चुका हूँ; किन्तु जब तक पूज्य प० यज्ञेश्वरजी आदि वैद्य-प्रवर एक मत होकर मेरे स्वास्थ्य के लिये अपनी पुष्ट सन्तोषजनक सम्मति न देगे तब तक इस सम्बन्ध के विषय मे अपना स्वीकारात्मक उत्तर अथवा कार्य स्थगित करने के लिये विवश हूँ। माना कि आपके तथा देवी के हृदय मे अगाध प्रेम है, परन्तु मै जो आज आगा-पीछा सोचने में कुछ विलम्ब कर रहा हूँ क्या वह सत्परिणाम-कामना का द्योतक नही है ?
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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