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________________ ११० पं० सत्यनारायण कविरत्न देख रहे थे । मै नमस्कार करने जब तक आया तब तक गाड़ी दूर निकल आई । उनकी निगाह ठीक सीध मे होने से नमस्कार - कार को सफलता न हुई । कृपाकर मेरी ओर से उनसे क्षमा माग लोजे । मास्टर साहब के सब ब्राह्मी- पत्र पहुँचा दिये। उनसे निवेदन करिये कि जरा इधर भी कृपा-दृष्टि रक्खें । पूज्य पं० शालग्रामजी से नमस्कार । श्री नारायणसिहजी सुन्दरलालजी तथा अन्य प्रेमी विद्यार्थियो से नमस्कार । 2 आपका ----- सत्यनारायण ३ नवम्बर को मुकुन्दरामजी ने एक पत्र गोस्वामी ब्रजनाथजी शर्मा के नाम भेजा । उसमे आपने लिखा था--- " हम मार्गशीर्ष से आगे विवाह के लिये कदापि नहीं ठहर सकते । यदि पं० सत्यनारायणजी किसी प्रकार भी उस समय तक नही कर सकते तो हम विवश है । हम अन्यत्र प्रबन्ध कर रहे है । आप उनसे बूझकर शीघ्र उत्तर दे । " फिर दूसरे पत्र मे पं० मुकुन्दरामजी ने गोस्वामीजी को लिखा " हमने आपसे बहुत आग्रह किया था कि हम बहुत शीघ्र विवाह करना चाहते है । यदि शीघ्र विवाह करना स्वीकार करें तो वाग्दान का मनीआर्डर लेवें अन्यथा वापिस कर दे। जब आपका उत्तर आ गया कि नही कर सकते, तब हमने अन्यत्र पत्र-व्यवहार किया था और सब बातचीत पक्की कर चुके थे । शीघ्र ही विवाह की तैयारी भी हो रही थी । इतने ही में फिर आपके पत्र मुझ पर तथा पं० पद्मसिंहजी पर आये कि अवश्य विवाह कर लेवेगे और वाग्दान का मनीआर्डर भी लेने की सूचना मिली तो फिर वहाँ का पत्र व्यवहार बन्द करके पं० सत्यनारायण
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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