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________________ पं० सत्यनारायण कविरत्न बुरी नहीं कि परस्पर सब बात देख ली जाय । कन्या से आपकी दशादि सब कह दी गई है। इतने पर भी वह आपको अनुकूल समझती है। भवदीय मुकुन्दराम शर्मा इसके उत्तर मे १३।१०।१५ को सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित पत्र भेजा था -- १३-१०-१५ भगवन, कृपा-पत्र मिला । ज्वर से पीडित होने तथा आगरा-प्रान्तीय हिन्दीसाहित्य-सम्मेलन-सम्बन्धी कार्य-भार के कारण ठीक सयय पर उत्तर न दे सका । क्षमा करियेगा। मेरा स्वास्थ्य अब पहले से गिर गया है । विवाह विषयक प्रश्न को मैने--एक बार नही-कई बार सोचा और जब-जब इस पर विचार किया तब-तब आत्मा के गम्भीरतम प्रदेश से यही निर्णयात्मक ध्वनि प्रतिध्वनि हुई कि जो व्यक्ति मेरे लिये इतना आत्मत्याग करता है उसके भविष्य-सुख को चिन्ता करना मेरा परम कर्तव्य है--धर्म है । ____ जैसा आपकी सेवा मे प्रथम निवेदन किया जा चुका है कि गृहस्थजीवन सुख-सौन्दयं अच्छे स्वास्थ्य पर निर्भर है, अपनी हाल की शारीरिक व्यवस्था को देखते हुए मुझे सखेद लिखना पड़ता है कि मेरा स्वास्थ्य विवाह योग्य कदापि नही है। ऐसी दशा मे आप से सादर यह अनुरोध करना अनुचित न होगा कि आप कृपया किसी स्वस्थ एवम् सुयोग्य सज्जन को चुनियेगा जिससे वह देवी आराम पावे । दशहरा पर सहसा सगाई भेजना साहस-कार्य है । इसे कदापि न करे; क्योंकि यह मेरे विचार के विरुद्ध है।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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