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पं० सत्यनारायण कविरत्न
मै क्या, कोई भी सहृदय आपकी आज्ञा उल्लघन नहीं कर सकता; फिर भी प्रस्तावित विषय पर पुनर्विचार करना कोई बुराई नही है । सहसा किसी कार्य को नही करना चाहिये । इसलिये निम्नलिखित कुछ बातो पर ध्यान देने की कृपा करने के लिये मै आप से सानुरोध प्रार्थना करता हूँ। आशा है, आप ऐसा करके कृतकृत्य करेंगे। जिन बातों पर विचार करना है वे सब की सब यथार्थ है, उन मे लेशमात्र भी अतिशयोक्ति की मात्रा नहीं है।
(१) मेरा स्वास्थ्य लगभग ३ साल से बिगड़ता चला आ रहा है। अब भी अच्छा नहीं है। बरसात मे रोग का दौरा होना सम्भव है जिसकी मै प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
(२) स्वतन्त्र जीवन ही मेरा जीवन है। नौकरी चाकरी कभी की नही और ऐसी दशा मे श्रम करना*xxx।"
ता० ३१ जुलाई १९१५ को सत्यनारायणजी ने किसी मित्र को यह पत्र लिखा था--
धाधूपुर
३१ जुलाई १६१५
प्रियवर,
कृपा पत्र यथा समय मिला । सामयिक सूचना के लिये धन्यवाद । विशद प्रकार से प० बदरीनाथ तथा प० लक्ष्मीधरजी ने मुझसे कुछ नहीं कहा है। हाँ, मुझे देखकर मुसकराये अवश्य है। आपको किस प्रकार सच आ गया कि मै 'बेचैन" हूं। प्रथम तो मेरा स्वास्थ्य ही अच्छा नही है । आपसे क्या यह छिपा है ? न मेरी ओर से अभी तक कोई प्रस्ताव गया है । अपनी दशा जैसी है वैसी ही लिख दी गई है । जैभे आपने यह कृपा की, वैसी ही उस पत्रोल्लिखित "गृहलक्ष्मी" की सद्गुणावली, अवकाशानुसार, विस्तारपूर्वक लिखिये।
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*इस पत्र का शेष अंश नहीं मिला। --लेखक