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पं० सत्यनाराण कविरत्न साथ सीधे-सादे सरल सुकवि सत्यनारायण का समीचीन सम्बन्ध शीघ्र ही सुसम्पन्न होने का शुभ समाचार सुरसिक साहित्य-सेवियो को सदा सन्तुष्ट रखेगा इसमे सन्देह नही । क्योकि यह सदानन्द सन्दोह के समागम का साधन है।"
यह समाचार पढकर पडित सत्यनारायणजी के अनेक मित्रों ने उनको पत्र भेजकर इस सम्बन्ध को न करने का आदेश किया। सरस्वती-सदन, इन्दौर के श्रीयुत द्वारकाप्रसाद "सेवक" ने इसी आशय का पत्र कविरत्नजी को भेजा, जिसमे यही आग्रह किया था कि इस सम्बन्ध को आप कदापि न करे । उधर विवाह के लिये पत्र-व्यवहार होता रहा । ___ २२ मई सन् १९१५ के पत्र मे श्रीयुत मुकुन्दरामजी ने गोस्वामीजी को लिखा था-- मान्यवर महाशय जी,
नमस्कार उपरोक्त आश्रम अब सहारनपुर से उठकर ज्वालापुर आ गया है। यहाँ भक्तराज सेठ बलदेवसिंहजी (देहरादून) ने भूमि तथा धन' इमारत के लिए दिया है। यहाँ इस संस्था की अधिक उन्नति होगी, ऐसी आशा है। आपका पत्र तथा दोनो पुस्तक प्राप्त हुए थे। हम आपके अनुगृहीत हैं।
परिवार की स्त्रियाँ देखना चाहती है । क्या उक्त पडितजी किसी प्रकार ज्वालापुर (हरिद्वार) पधार. सकते है ? सब बातें भी तय हो सकेगी। देखना भी सर्व प्रकार ठीक हो सकेगा। मै तो स्वयं भी वहाँ ही आकर देख सकता हूँ। बूझकर सूचना दे तो बड़ी कृपा हो । आने-जाने का व्यय हम दे देवेगे ।
पं० पद्मसिहजी--सम्पादक "भारतोदय'.--भी ज्वालापुर में उक्त पडितजी को जानते है । साक्षात्कार उनसे भी हो जावेगा। कृपया वापसी डाक उत्तर दें।
भवदीयमुकुन्दराम शर्मा
अधिष्ठाता संस्कृत-कन्या-विद्यालय।