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________________ द्वितीय संस्करण कविरत्न सत्यनारायण जी के जीवन चरित के द्वितीय सस्करण के प्रकाशित होने के अवसर पर हमे कुछ निवेदन करना है । इसका प्रथम संस्करण सन् १९२६ मे छपा था और तब से लगाकर अब तक पिछले ३७ वर्षो मे हमारे चरित्र चित्रण सम्बन्धी विचारो मे परिवर्तन हो चुका है, फिर भी इस संस्करण मे ( जिसे पुनः मुद्रण कहना ही ठीक होगा ) हमने कोई रद्दोबदल नही की । इसका मुख्य कारण यही है कि सत्यनारायण विषयक समस्त सामग्री, जो सम्मेलन मे सुरक्षित थी, खो गई है । यद्यपि सत्यनारायण जी को अपने जीवन में अनेक दुर्घटनाओ का शिकार होना पड़ा, तथापि यह अन्तिम दुर्घटना सब से अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि इससे उनके यशः शरीर को भयंकर आघात पहुँचा है । उक्त सामग्री के अभाव में जीवन चरित मे आवश्यक सशोधन करना असम्भव हो गया ! आपाधापी और रीडरबाजी के इस युग में जब तक किसी हिन्दी लेखक को पाठ्य-पुस्तक-क्षेत्र में जाने का अवसर नहीं मिलता, तब तक उसकी रचनाओं का विधिवत् प्रचार नहीं हो पाता । यह स्थिति वाछनीय नहीं, फिर भी सत्य है । स्वर्गीय अध्यापक रामरत्न जी के उद्योग से सत्यनारायण जी का प्रवेश विश्वविद्यालयों में हो गया था, पर कुछ दिनों बाद वे वहाँ से बहिष्कृत कर दिये गये । पाठ्यक्रम में दूसरों की लगी लगाई पुस्तकों को निकलवा देने और अपनी पुस्तकों को रखवा देने के लिये जिन-जिन हथकण्डों का प्रयोग किया जाता है, उनको चर्चा करने के लिये यहाँ स्थान नही ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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