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से आगये हैं । गौड़जी के व्याख्यान के बाद उनका कविता-पाठ होगा । थोड़ी देर बाद कविरत्नजी को कविता सुनकर श्रोतागण दग हो गये और वाह-वाह करने लगे। दो दिन मे बुलन्दशहर और उसके समोपवर्ती स्थानों मे सत्यनारायणजी की धूम मच गयी। सैकड़ों श्रोताओ ने जगहजगह उनका यशोगान किया। ये एक दिन और रोक लिये गये । उस दिन निजी गोष्ठी मे उनका सफल कविता-पाठ और भाषण हुआ। फिर उन्हे स्टेशन पर विदा करने के लिये, मै और लगभग पचास सज्जन और गये। ___ सन् १९१६ की जुलाई मे, मै 'आय॑मित्र' का सम्पादक होकर आगरा आया, तब तो कविरत्नजी से बहुत ही घनिष्ठता हो गयी। वे सप्ताह में दो-तीन बार मेरे स्थान पर लोहामडी आते और खूब बात-चीत करते थे । 'चौ भय्या हरीशकर का है रयो है, यह उनका प ला बोल होता था। कभी-कभी प० बदरीनाथ भट्ट के साथ मै भी धाँधूपुरा (सत्यनारायण जी का निवास स्थान) जाता था। वैसे कविरत्नजी अधिकतर श्री पं० अयोध्याप्रसाद पाठक, बी० ए०, एल० एल० बी० वकील के यहाँ गुड़ की मण्डी महल्ले मे मिलते थे। पं० सत्यनारायणजी से मैने 'आर्यमित्र' के लिये अनेक कविताएं लिखाई जो 'भक्त की भावना' शीर्षक और 'भक्त' के नाम से प्रकाशित हुई। उस बार मै दिसम्बर १६१९ तक 'आर्यमित्र' का सम्पादक रहा। फिर अस्वस्थ हो जाने के कारण पूज्य पिताजी के आदेशानुसार इस्तीफा देकर, अपने घर हरदुआगज चला गया। सन् १९१८ ई० मे जिस दिन कविरत्नजो का देहान्त हुआ मैं अपने घरहरदुआगंज से भी 'आर्यमित्र' का सम्पादन कर रहा था, क्योंकि उन दिनों आगरा मे भयंकर प्लेग फैला हुआ था बहुत से लोग आगरा छोड़कर बाहर चले गये थे। शंकर सवन,
- हरिशंकर शर्मा आगरा