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________________ ८४ पं० सत्यनारायण कविरत्न in the Hindı world and who had command over both facile and attractive style” ___ अर्थात् “सत्यनारायणजी हिन्दी-ससार के एक प्रतिभाशाली ग्रन्थकार थे आर उनकी लेखनशैली बड़ी धाराप्रवाह और आकर्षक थी। __श्रीमान् प० श्रीधर पाठक ने लिखा था-“यत्र-तत्र अवलोकन से प्रतीत हुआ कि इसमे अनुवादक ने विशेष परिश्रम किया है और कृति उत्कृष्ट कोटि की है।" 'सरस्वती' ने लिखा था--"इस नाटक के जो दो-एक अनुवाद हमारे देखने मे आये है उन सब से यह अनुवाद अच्छा है। सत्यनारायणजी ने अपनी विज्ञप्ति के अन्त मे "नयी रोशनीवालो" पर जो कठोर आक्षेप किये है उनका उत्तर अव हम नहीं देना चाहते क्योकि उसके सुननेवाले ही नही रहे।" 'सरस्वती' के समालोचक को जो बात बुरी लगी थी वह यहां उद्धृत की जाती है । सत्यनारायणजी ने लिखा था "आजकल नयी रोशनीवालो को ब्रजभाषा स कुछ चिढ-सी हो गई है। शृगार का नाम सुनकर उनकी आँखो मे खून उतर आता है। इसलिये इस अभागिनी भाषा तथा उक्त विषय पर पहले तो लोग लिखते ही बहुत कम है--जो लिखता भी है उसका ग्रथ आथिक दुर्दशा के कारण इस क्रय-विक्रयमय ससार मे अपनी सूरत ही नहीं दिखा सकता। इस भांति उत्साह-भंग होते हुए भी यदि किसी के हृदय मे कुछ लिखने की तरग उठे तो उसे फवकड हो समझना चाहिये । कुछ भी समझा जाय किन्तु प्रसन्नता की बात यह है कि जो काम सौपा गया था वह किसी प्रकार पूर्ण होकर सेवा मे उपस्थित है ..... इत्यादि ।" हमे तो सत्यनारायणजी के उपर्युक्त शब्दों मे अनुचित या “कठोर आक्षेप' दीख नहीं पडते. या इस बात का खेद है कि “सरस्वती' की समालोचना निकलने के समय तक सत्यनारायणजी नही रहे ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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