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मालती - माधव
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मुझे भरतपुर रहने का अवसर प्राप्त हुआ था। मनोरंजन के लिये प्रार्थना करने पर परम पूजनीय सहृदय श्री पण्डित मयाशङ्करजी बी० ए० ने, जो आजकल दीध में नाजिम हैं, प्राचीन हस्तलिखित संस्कृत हिन्दी - पुस्तको की खोज का कार्य आरम्भ कर दिया । उसी समय एक जीर्ण-शीर्ण पुस्तक के दर्शन हुए, जिसमे इधर-उधर के पत्र नही थे । खोलकर उसे बीच मे देखा तो सामने श्मशान का वर्णन । तुरन्त हृदय में विचार उठा कि कही भवभूति प्रणीत संस्कृत मालती - माधव नाटक के आधार पर तो नही लिखा गया है ? अच्छी तरह जहाँ-तहाँ पढने से विचार ठीक निकला । इस पुस्तक का नाम 'माधव - विनोद' है । इसके रचयिता ब्रजभाषा के आचार्य कविवर श्रीसोमनाथजी चतुर्वेदी है । x x x 'माधवविनोद' मालती - माधव नाटक का सुन्दर आद्योपान्त पद्यात्मक किन्तु स्वच्छन्द अनुवाद है । उसे अनुवाद न कहकर अपने ढङ्ग का स्वतंत्र ग्रन्थ कहना अनुचित न होगा । इस लेखक द्वारा किया हुआ 'उत्तररामचरित नाटक
हिन्दी अनुवाद उस समय छप चुका था । मित्रो के अनुरोध से सन् १९१४ की वसन्त ऋतु में 'मालती - माधव' नाटक का अनुवाद भी प्रारम्भ कर दिया गया" ।
दुख की बात है कि यह अनुवाद सत्यनारायणजी की मृत्यु, के बाद प्रकाशित हो सका, यद्यपि इसके कई फार्म उनके सामने ही छप चुके थे । इस पुस्तक के विषय मे सैयद अमीरअली 'मीर' ने लिखा था
"भारत मानसजा ब्रजभाषा की, माधुरी जामे रही सरसाई । भाव ते भाव भरे भवभूति के, भारत नीति की नीकी निकाई । ओज प्रसादमयी कविता की बही भाइ है 'मीर' मनै मन मोहिनी
सरिता सी मालती - माधव
सदा सुखदाई । मंजुलताई ||
" माडर्न रिव्यू " के समालोचक ने हुए सत्यनारायणजी के विषय मे लिखा था :--
"The talented author who was a well known figure
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इस पुस्तक की आलोचना करते