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________________ साहित्य-सेवा सत्यनारायणजी की साहित्य-सेवा का उल्लेख करते हुए प्रारम्भ मे यह कह देना उचित होगा कि उनकी कविता की आलोचना करना इस अध्याय का उद्देश्य नही है। यहाँ तो उनकी पुस्तको का सक्षिप्त विवरण देकर केवल कुछ आलोचनाएँ उद्धृत की जा रही है। इनसे पाठको को सत्यनारायणजी की रचनाओ का कुछ अनुमान हो सकेगा। सत्यनारायणजी ने चार पुस्तके लिखी थी-(१) 'उत्तर रामचरित' (२) 'होरेशस' (३) 'मालती-माधव' और (४) 'हृदय-तरग' । पहली तीनो पुस्तके अनुवादित है और चौथी पुस्तक उनको फुटकर कविताओ का संग्रह है। विद्यार्थी-जीवन समाप्त करने के बाद सत्यनारायणजी केवल ८ वर्ष जीवित रहे और इन आठ वर्षों मे उन्होने जो परिश्रम किया उसका फल हमारे सम्मुख उपस्थित है* । उत्तर राम-चरित महाकवि भवभूति कृत सस्कृत नाटक 'उत्तर राम-चरित' । का यह हिन्दी-पद्यानुवाद है। इसे फीरोजाबाद के 'भारती-भवन' ने प्रकाशित किया था। ___ *सत्यनारायणजी की इच्छा एक महाकाव्य लिखने की भी थी। चित्तौड, हल्दी-घाटी इत्यादि जिन-जिन स्थानो मे भारतीय वीरो ने अपनी वीरता प्रदर्शित की थी उन सव स्थानो की वे यात्रा करना चाहते थे। प्रत्येक स्थान पर बैठकर वहाँ किये हुए वीरता-पूर्ण कार्यों का वर्णन वे अपनी कविता मे करने के इच्छुक थे। अपने मित्र श्रीयुत सूर्यनारायण अग्रवाल से उन्होने इस विषय मे कई बार कहा भी था। यह हिन्दी-साहित्य का दुर्भाग्य था कि सत्यनारायणजी अपने इस विचार को कार्य्यरूप में परिणत नही कर सके |--लेखक ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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