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पं० सत्यनारायण कविरत्न ऊँचा था। इसी कारण इस प्रकार की पद्य-रचना उनके लिये एक स्वाभाविक बात थी।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि देश के आन्दोलनो के साथ सत्यनारायण वराबर चलते रहे थे। हिन्दी के अन्य किसी आधुनिक कवि ने अपने समय मे देश के आन्दोलनो के विषय मे इस प्रकार कविता को ही, इसमे सन्देह है। सत्यनारायणजी अपनी कविता द्वारा जन-समाज को प्रोत्साहन दे उसका मनोरजन करने में वर्तमान कवियों में सबसे अधिक सफल हुए, इस विषय मे तो किसी को मतभेद न होगा। अपनी रचनाओ से उन्होने साहित्य की क्या सेवा की यह बात हम अगले अध्याय मे फिर लिखेगे।
*श्रीयुत शालग्रामजी वर्मा ने अपने एक पत्र में लिखा था-"मैंने पडितजी से एक बार इस विषय मे कहा भी था कि आपकी ये विदाईपत्र-सम्बन्धी रचनाये प्राय. एक सी हो जाती है और इनसे आपकी कविता पर परोक्ष रीति से भद्दा प्रभाव पड़ता है । इसके उत्तर मे हँसकर पंडितजी ने यही कहा था कि बहुत से लोगों के कहने का ख्याल करके मुझे ये विदाई-पत्र लिखने पडते है और विषय के एकाङ्गी होने से कविता भी एक-सी हो जाती है"-लेखक ।