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जीववर्गीकरण का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मानव । इतिहास, कारण कि, विज्ञान आते ही मनुष्य ने अपने नैकटिक प्राणियों को नाम देना शुरू कर दिया था। पुरातन काल में मनुष्य ने अपने हिसाब से जन्तुओं को घातक अघातक, भक्ष्य अभक्ष्य, लाभदायक-हानिकारक इत्यादि अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया था किन्तु यह वर्गीकरण प्राकृतिक नहीं था। 1E जीव वर्गीकरण को विशेष रूप से इन वैज्ञानिकों ने आगे बढ़ाया। (1) ग्रीक दार्शनिक ऐरिस्टोटल-सन् 384-322 (2) वैज्ञानिक जॉनरे - सन 1628-1705 (3) स्वीडन के वनस्पतिज्ञ कैरोलस लिनिपस-1707-1778
वर्गीकरण के समूह-(1) जगत (2) संघ (फाइलम) 3) उपसंघ (सबफाइलम) F4) वर्ग (क्लास) (5) उपवर्ग (सबक्लास) (6) गण (आर्डर) (7) कुल (फैमिली)
(8) वंश (जीनस)9) जाति (स्पीशीज)। भ जन्तुविज्ञान की शाखाएं--(1) आकारिकी, (2) शारीरिकी, (3) औतिकी, (4) TE कोशिकाविज्ञान, (5) वर्गिकी, (6) शरीर क्रियाविज्ञान, (7) प्रौणिकी, (8)
आनुवंशिकी, 9) पारिस्थितिकी, (10) विकास, (11) जीवाश्म विज्ञान, (12) प्राणिभूगोल, (13) अन्तःस्रावी विज्ञान, (14) एंजाइम विज्ञान, (15) जीव-रसायन, (16) जीवभौतिकी, (17) अन्तरिक्षजीवविज्ञान, (18) परजीवी विज्ञान, (19) रोग विज्ञान, (20) अस्थिविज्ञान।। जन्तु विज्ञान के प्रकार (1) कृमि विज्ञान, (2) कीटविज्ञान. (3) मत्स्यविज्ञान, (4) उभयसृपविज्ञान, (5) पक्षीविज्ञान, (6) स्तनधारी विज्ञान, (7) जीवाणु विज्ञान, (8) प्रोटोजूलोजी विज्ञान।
जीवविज्ञान में जीव के निम्नविषयों पर विवेचन किया गया है:(1) जीवनधारियों में जीवन प्रक्रियाएं। (2) आनुवांशिकी एवं जैव विकास के मूलतत्व । (3) जीवन प्रक्रियाएं एवं मानवकल्याण। (4) मनुष्य एवं उसका पर्यावरण। (5) जीवविज्ञान एवं मानवजीव विज्ञान का सामाजिक पक्ष ।
(जन्तुविज्ञान-ले. डा. वीरबाला रस्तौगी; पृ. 7. 142)
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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