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________________ 45454545454545454545454545454545 51 123+1 आर्यखण्ड सम्मू. लध्यपर्याप्तक मनुष्य 124+ भवनवासी-10 व्यन्तर-8 ज्येतिष्क-5 वैमानिक-63 नारकी-49 135+ योग TE कर्मभूमिगर्भजमनुष्यादि-6 - 141x2 पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त 282 पूर्वोक्त भेद 124 406 कुल भेद अन्य प्रकार से जीव भेदों की गणना 3. (1) सामान्य- 1+193202 %3D 10x19 = 1901 1 (2) पर्याप्त-निर्वृत्यपर्याप्त-2+38 = 40:2 = 20x19 = 3801 L (3) पर्याप्त, निर्व.. लब्य.-3+57 = 60:2 = 30x19 = 5701 प्रथम प्रकार वर्गीकरण - 18 जीवजातियां द्वितीय प्रकार वर्गीकरण- 406 जीवजातियां तृतीय प्रकार वर्गीकरण-570 जीवजातियां - इस प्रकार नेमिचन्द्राचार्य का आत्मिक जीव विज्ञान सूक्ष्मरीति से जीवों का वर्गीकरण करने में समर्थ है। भौतिक विज्ञान की अपेक्षा जीवों का वर्गीकरण भौतिकविज्ञान की अपेक्षा जीव का लक्षण :- जिसमें चलन, श्वसन, पोषण, जनन, कम्पन आदि क्रियाएं पाई जाती है वे जीव कहे जाते हैं और क्रिया की अभिव्यक्ति ही जीवन है। जीववर्गीकरण विज्ञान एवं उसका इतिहास अध्ययन की सुगमता के लिये समानताओं के आधार पर प्राणियों को विशिष्ट समूहों में संकलित किया गया है तथा प्रत्येक समूह को उसमें संकलित किये गये प्राणियों की विशेषताओं के आधार पर एक निश्चित नाम प्रदान किया गया है। विभाजन की इस प्रक्रिया को वर्गीकरण नाम दिया गया है। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 408 454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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