SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9559595959595959555555555 卐सारांश-यह कि आध्यात्मिक विज्ञान के द्वारा जीवों का वर्गीकरण किया गया 卐 है वह सूक्ष्म एवं व्यापक है। इस प्रकार का वर्णन भौतिक विज्ञान के द्वारा नहीं किया गया है वह तो स्थूल एवं सीमित है और मध्यलोक के अल्पक्षेत्र में ही सम्बन्ध रखता है। उपसंहार सिद्धान्तग्रन्थों के प्रणयन से जिनका प्रामाण्य सिद्ध होता है। उन । नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने प्रत्यक्ष में चामुण्डराय के निमित्त से एवं परोक्ष में प्राणिमात्र के हितार्थ गोम्मटसार ग्रन्थ की रचना की। वीरप्रतापी चामुण्डराय ने श्रवणवेगोल के विन्ध्यगिरि पर, श्रीनेमिचन्द्राचार्य के सान्निध्य में बाहुबलि प्रथमकामदेव की प्रतिष्ठापना की। गोम्मटसार (पंचसंग्रह) की सार्थगंभीरता 13 टीकाओं से प्रमाणित होती है। इनकी रचनाओं में सार का प्रयोग होने 1 से सारपूर्ण सिद्ध हैं। नेमिचन्द्राचार्य संस्कृत, प्राकृत, कन्नड़, गणितशास्त्र के पारगामी सिद्धान्तचक्रवर्ती थे। वे अपने गुरु के श्रेष्ठशिष्य जिस तरह प्रसिद्ध IT थे, उसी तरह अपने प्रतापी चामुण्डराय विशिष्ट शिष्य के प्रतिष्ठित गुरु थे। उनके स्वरचित सिद्धान्त वस्तुतः सिद्धान्त हैं। आचार्यप्रवर ने आध्यात्मिक दृष्टि से जीवकाण्ड में त्रिलोक के अन्तर्गत जीवों का महत्त्वपूर्ण वर्गीकरण किया है। इस उच्चस्तर के तुल्य, भौतिकदृष्टि से वर्णित जीवों का वर्गीकरण नकारात्मक है। भौतिकवाद जहां समाप्त होता है, वहां से अध्यात्मवाद प्रारंभ होता है। अन्त में णिक्खेवे एयत्थे, णयप्पमाणे णिरुत्ति अणियोगे। मग्गइवीसं भेयं, सो जाणइ अप्पसव्यावं।। सागर डॉ० दयाचन्द्रसाहित्याचार्य प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 410 5454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy