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________________ 194 श्रीमल्लिनापरतुति। श्रीमल्लिनाथस्तुति। प्रजावत्या दयावत्याः कुम्भनाम्नः प्रजापतेः। कर्मारिविजयी जातो मल्लिनाथो जगद्भुटः ॥१॥ अर्थ- कर्मरूपी शत्रुओंको जीतनेवाले और तीनों लोकोंमें एक मात्र योद्वा भगवान् मल्लिनाथ श्रेष्ठ दयाको धारण करनेवाली महारानी प्रजावती और महाराज कुम्भके पुत्र हुये थे। स्वधर्महीनान सकलांश्च जीवान प्रदर्श्य भोगं सुखदुःखमेव । कृत्वा त्रिलोकी स्ववशे स्थितः स गर्वेण सर्वोपरि कर्ममल्लः ॥२॥ मदान्वितं दुःखमये भवाब्धौ तं क्षेपकं निर्दयकर्ममल्लम् । विरागशस्त्रैश्च निहत्य लोके त्वमेव जातः सुभटस्य नाथः ॥३॥ अर्थ- हे भगवन् ! जो जीव अपने आत्मधर्मसे रहित है उन सबको इस कमरूपी मल्लने भोग वा सुख दुःख दिखला कर तीनों लोकोंको अपने वशमें कर लिया है और इसीलिये वह अभिमानके साथ सबका नायक बनकर रह रहा है । हे नाथ !
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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