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________________ २७ __ श्रीशान्तिसागरचरित्र। तत्प्रार्थनावशात्सूरीमत्वा धर्मप्रभावनाम् । अचलतेनसाई हि कायोत्सर्ग विधाय वै ॥७॥ अर्थ-वहींपर सेठ पुनमचन्द्र के पुत्र घासीलाल तथा दाडिमचंद, गेंदमल, मोतीलाल आदि उनके पुत्रपौत्र और घरकी सब स्त्रियां आचार्य शांतिसागरकी वंदना करनेके लिये आये। सेठ घासीलालने शुभ भावोंसे तथा बडे भारी उत्साहपूर्वक आचार्य शांतिसागर महाराजकी वदना की और यात्राके लिये नीचे लिखे अनुमार प्रार्थना की। वे सेठ प्रार्थना करने लगे कि हे स्वामिन्, मैं संघसहित श्रीसम्मेद शिखरकी यात्रा करना चाहता है कृपाकर आप भी मेरेसाथ पधारें। सेठकी इस प्रार्थनाको सुनकर और उनके साथ चलनेमें धर्मकी प्रभाबना समझकर वे आचार्य कायोत्सर्ग कर उनके संघके साथ वहांसे चले। शास्त्री नन्दनलालोपि वन्दनार्थं समागतः । वंदित्वा सह संघनाचलच्च गुरुभक्तये ॥८॥ अर्थ- वहींपर नन्दनलाल शास्त्री भी वंदनाके लिये आये थे। उन्होंने आचार्यमहाराजकी वदना की और उस संच के साथ गुरुभक्ति करनेके लिये वे भी चले । जनान् प्रबोधयन मार्गे प्राप्तः सांगलिपत्तनम् । राजलोकैः प्रजावगैः श्रेष्ठिभिः श्रावकैस्तथा ॥९॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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