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________________ * SE KASS- * ४२ wwvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv . बृहज्जैनवाणीसंग्रह त्राता , तुम जाने नहीं जी ॥ १४ ॥ प्रभु भागनि पायेजी, गुन श्रवण सुहाये जी । तकि आया सब सेवककी, विपदा हरौंजी ॥ १५॥ भववास वसेराजी, फिर होय न फेराजी। सुख पावै जन तेरा, स्वामी सो करौंजी ॥ १६ ॥ तुम शरन । * सहाईजी, तुम सज्जन भाई । तुम माई तुम्हीं बाप दया । मुझ लीजियेजी ॥१७॥ भूधर करजोरै जी, ठाडो प्रभु ओरै । जी निजदास निहारौ, निरमय कीजियेजी ॥१८॥ ३५-भूधर कृत दर्शन स्तुति पुलकंत नयन चकोर पक्षी, हँसत उर इंदीवरो। दुर्बुद्धि । चकवी विलख विछुरी, निबिड मिथ्यातम हरो ।। आनंद र अंबुधि उमगि उछरयो, अखिल आतप निरदले । जिनवदन * पूरनचंद्र निरखत, सकल मनवांछित फले ॥१॥ मम आज . आतम भयो पावन, आज विघ्न विनाशिया । संसारसागर । नीर निवड्यो, अखिल तत्त्व प्रकाशिया । अब भई कमला। किंकरी मम, उभय भव निर्मल थये । दुख जरयो दुर्गति । ॐ वास निवरयो, आज नव मंगल भये ॥२॥ मनहरन मूरति । । हेरि प्रभुकी, कौन उपमा लाइये।मम सकल तनके रौम हुलसे, हर्षओर न पाइये ॥ कल्याणकाल प्रतच्छ प्रभुको, लखें जे* * सुरनर घने। हित समयकी आनंद महिमा, कहत क्यों मुखसों । वने ॥३॥ भर नयन निरखे नाथ तुमको. और वांछा। ना रही। मन ठठ मनोरथ भये पूरन, रंक मानों निधिलही * ---- --- *
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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