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हज्जैनवाणीसंग्रह ४१ ३४-भूघरकृत स्तुति । त्रिभुवनगुरुस्वामीजी, करुनानिधिनामीजी। सुनि अंतरजामी, मेरी बीनतीजी ॥ १ ॥ मैं दास तिहाराजी दुखिया । बहु भाराजी । दुख मेटनहारा तुम जादौपतीजी ॥२॥ भरम्यो संसाराजी, चिरविपति-भंडाराजी। कहिं सारन । सार, चहंगति डोलियाजी ॥ ३ ॥ दुखमेरु समानाजी, सुख सरसों-दानाजी । अब जान धरि ज्ञानतराजू तोलियाजी ।
hथावर-तन पायाजी. बस नाम धरायाजी । कृमि कुंथु ॥ कहाया, मरि भंवरा हुवाजी ।। पशुकाया सारीजी, नानाविषधारीजी । जलचारी थलचारी, उडन पखेरुवाजी ॥६॥ नरकनके माहीजी, दुखओर न काहीजी । अति घोर जहां है, सरिता खारकीनी ॥ ७ ॥ पुनि असुर संहारैजी, निज | वैर विचारंजी । मिल बांधै अरु मारै, निरदय नारकीजी
॥ ८॥ मानुष अवतारंजी, रह्यो गरम मझारैजी । रटि रोयो । जनमत, विरियां में घनोजी ।। ६ ।। जोवन तन रोगीजी, के विरह वियोगी जी। फिर भोगी बहुविध, विरधपनाकी वेदना जी ॥ १० ॥ सुरपदवी पाईजी, रंभा उरलाईजी ।। तहां देखि पराई, संपति झूरियोजी ॥ ११ ॥ माला मुरझा-10 नीजी, जब आरति ठानी जी। थिति पूरन जानी, मरत विसरियोजी॥ १२ ॥ या दुख भव केरा जी, भुगते बहुतेराजी । प्रभु ! मेरे कहते पार न है कहीं जी ॥ १३ ॥ मिथ्यामदमाताजी, चाही नित साताजी । सुखदाता जग-1
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