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________________ २८ - -- .wor -5-22- 25 K K वृहज्जैनवाणीसंग्रह ___ यदि किसीको अर्थ चढ़ाना हो, तो नीचे लिखे पद्य व मंत्र । * बोलकर चढाना चाहिये। र जल परम उज्वल गंध अक्षत पुष्प चरु दीपक धरूं । वर । धूप निर्मल फल विविध, बहु जनमके पातक हरूं । इह ! * भांति अर्थ चढ़ाय नित भवि करत शिवपंकति मधु । अरहंत * श्रुतसिद्धांत गुरुनिरग्रंथ नित पूजा रचूं ॥ ४ ॥ वसुविधि * अर्घ सँजोयके, अतिउछाह मनकीन । जासों पूजौं परमपद, देवशास्त्र गुरु तीन ॥४॥ . ओं ही देवशास्त्रगुरुभ्योऽनयंपदप्राप्तये अधं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ २३--दर्शनदशक छप्पय ॐ देखे श्रीजिनराज, आज सब विघन नशाये । देखे श्रीजिनराज, आज सब मंगल आये । देखे श्रीजिनराज काज करना कछु नाहीं । देखे श्रीजिनराज, हौंस पूरी मनमाही॥ * तुम देखे श्रीजिनराज पद, भौजल अंजुलिजल भया । * चिंतामनिपारसकल्पतरु, मोहसबनिसों उठि गया ॥१॥ देखे श्रीजिनराज, भाज अब जाहिं दिसतर। देखे श्रीजिनराज, काज सब होय निरंतर ॥ देखे श्रीजिनराज, राज मनवांछित करिये । देखे श्रीजिनराज नाथ. दुख कबहुं न । । भरिये॥ तुम देखे श्रीजिनराजपद, रोमरोम सुख पाइये। धनि आज दिवस धनि अव घरी, माथ नाथकों नाइये ॥२॥ धन्य धन्य जिनधर्मकर्मको छिनमें तोरै । धन्य धन्य ।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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