________________
८
vvvvvvvvvvvvvv VUVVVI
wwwwwwwwwwwwwww
mam
-
-
-
-
-
-
-
-
-
--
-
-
-
-
वृहज्जैनवाणीसंग्रह
४ । है इष्टबन्धुवियोग । तियतनयसंपतियोग। राजादि चोरु मरी । शत्रु सवही घरी ॥४४॥तिहि विधननाशन हेत । करदेवजजन सुचेत । तिहि पुण्यके परभाव । घर होइ मंगल चात्र ॥ १५॥
अतत । जहं अतत आवै वरन । धनलाभ तहं बुधि वरन। संपदा सुख विस्तरन । सव सिद्धि बांछितकरन ॥ ४६॥ * प्रिय इष्ट बन्धू मिलन । सबलाभ दिन-प्रतिदिनन ॥ उद्यम
तथा रनथान । तुव धुत्र विजय बुधिवान ॥४७॥ बादानु। बाद मंझार । तुव जीत होय उदार । यामें न संशय करहु शुभ जानि धीरज धरहु ॥४८॥
इति अकारादि प्रथम प्रकरण।
अथ रकारादि द्वितीय प्रकरण। रअ । आदि रकार अकार दुइ, जब ये प्रगटें वन । तब धन सम्पति लाम बहु, सुजनसमागम कर्न ॥ ४९ ॥ सोना
रूपा ताम्र बहु, वसनाभरन सुरत्न। प्राप्त होय निश्चय सिकल, चिन्तित वित जुतजन ॥५०॥ अन्तरैन दीखै सुपन, * माला सुमन सुजान । हयगजरथ आरूढ़ अरु, देवागमन
विमान ॥५१॥ । रअर । आदि रकार अकार पुनि, तापर परै रकार । सुनि । * पूछक तँ तासु फल, है अभिमत दातार ॥५२॥ देशमजाको ।
लाभ है, खेती वर व्यापार । धन पावै परदेशमें, घरमें । सब सुखसार ॥५३॥ संगर संकट घोरमें, कुलदेवी सुख
-
-
-
-
-
-
-
----
---