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________________ R EKK6522 - ARE* AAAAAAAAAAAAAAAAAAA १३९२ हज्जैनवाणीसंग्रह पशू हति खाये भूर ॥णा कवहूं आप भयो बलहीन । सबल* निकरि खायो अतिदीन ॥ छेदन भेदन भूखपियास | भार वहन हिम आतप त्रास ||८॥ वध बंधन आदिकदुख घने। कोटि जीभते जात न भने ॥ अतिसंक्लेश भावतें मरथो।। घोर शुभ्रसागरमें परथो ॥९॥ तहां भूमि परसत दुख इस्यो। वी सहस डसें तन, तिस्यो ॥ तहां राधशोणितवाहिनी ।। कृमिकुलकलित देह दाहिनी ॥१०॥ सेमरतरुजुत दलअसिपत्र । असि ज्यों देह विदा तत्र ॥ मेरुसमान लोह गलि जाय । ऐसी शीत उष्णता थाय ॥११॥ तिलतिल करहिं । * देहके खंड । असुर मिडावें दुष्टप्रचंड । सिंधुनीरतै प्यास न * जाय । तौ पण एक न बूंद लहाय ॥१२॥ तीनलोकको नाज • जु खाय । मिटै न भूख कणा न लहाय ॥ ये दुख बहु सा*गरलौं सहै । कर्मजोगते नरतन लहै ॥१३॥ जननी उदर । बस्यो नवमास । अंग सकुचत पाई त्रास ॥ निकसत जे दुख । पाये घोर । तिनको कइत न आवै ओर ॥१॥ वालपनेमें । ज्ञान न लह्यो। तरुणसमय तरुणीरत रह्यो । अर्घमृतकसम । बूढ़ापनो। कैसें रूप लखै आफ्नो ॥१५॥ कमी अकामनि जरा करै । भवनत्रिकमें सुरतन धरै ॥ विषय चाड दावालन दह्यो । मरत विलाप करत दुख सह्यो ॥१६॥ जो विमानवासी हूं थाय । सम्यकदर्शन विन दुख पाया। तहत चय थावर-। तन धरै । यो परिवर्तन पूरे करें ॥१७॥ । पद्धरि छंद। • ऐसे मिथ्या गज्ञानचरन । वश भ्रमत भरत दुख जन्म-1
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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