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________________ ३६० 夺敌人 www वृहज्जैनवाणीसंग्रह wwwwwww www wwwww wwwwwwwwwwwwwwww. १४० - चौतीस अतिशय । १ पसेवरहित शरीर २ मलमूत्ररहित शरीर ३ रक्त क्षीरसमान ४ आकृति शोभायमान ५ अतिरूपवान शरीर ६ सुगंधित शरीर ७ समचतुर्सस्थान ८ एकहजार आठ लक्षणयुक्त शरीर ९ बल विशेष १० मिष्ट वचन ( यह दश अतिशय जन्मके हैं ) १ शतयोजन सुभिक्ष २ आकाश गमन ३ अहिंसा ४ उपसर्गरहित ५ आहाररहित ६ चतुर्मुख दर्शन ७ समस्त विद्यामें स्वामित्व ८ छायारहित शरीर ९ नेत्रोंके पलक लगें नहीं १० नख केश बढ़ें नहीं ( यह देश अतिशय केवलज्ञानके हैं ) १ सब भाषा मिश्रित मागधी भाषा २ सब जीवों में मित्रता ३ छहों ऋतुके फल फूलोंका एक ही समय में फलना ४ दर्पण समान पृथ्वी ५ सुगंधित वायु ६ सम्पूर्ण जीवोंको आनन्द ७ एक योजनतक भूमि शुद्ध ८ गन्धोदकवृष्टि ९ आकाश निर्मल १० जय जय शब्द ११ चरणोंतल कमलोंकी रचना १२ धर्मचक्र सन्मुख चले १३ वायुकुमार हवा करें १४ अष्टमंगल द्रव्य ( यह चौदह अतिशय देवकृत हैं ) इस प्रकार १०, १०, और १४ कुल ३४ हुये । १११ - आठ महाप्रतिहार्य । १ अशोकवृक्ष २ पुष्पवृष्टि देवोंकृत ३ दिव्यध्वनि ४चामर ५ छत्र ६ सिंहासन ७ भामण्डल ८ दुन्दुभि शब्द |
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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