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________________ ३५८ वृहज्जैनवाणीसंग्रह पद्मावती [ह०] २१ वप्पिला [३०] वप्रा [ह० ], २२ सिवादेवी २३ वामादेवी २४ प्रियकारिणी [त्रिसला ] इसप्रकार क्रमशः चौबीस तीर्थकरों की माताका नाम है। १३६ - तीर्थंकरोंका निर्वाणक्षेत्र । ऋषभदेवजीने कैलास पर्वतपरसे, वासुपूज्यजीने चंपापुरसे, नेमिनाथजीने गिरनारसे, महावीरजीने पावापुरसे निर्वाण प्राप्त किया है और शेष २० तीर्थकरोंने श्री सम्मेद - शिखरजी से निर्वाण प्राप्त किया है । 2 १३७ - तीर्थंकरोंके शरीर की ऊंचाई । १ श्री ऋषभनाथजीके शरीरकी ऊँचाई ५०० धनुष, २ अजितनाथजीकी ४५० धनुष, ३ संभवनाथजीकी ४०० धनुष, ४ अभिनंदननाथजीकी ३५० धनुष, ५ सुमतिनाथजीकी ३०० धनुष, ६ पद्मनभुजीकी २५० धनुष, ७ सुपार्श्वनाथजीकी २०० धनुष, ८ चन्द्रप्रभजीकी १५० धनुष, ९ पुष्पदंतजीकी १०० धनुष, १० शीतलनाथजीकी ९० धनुष. १९ श्रेयांसनाथजीकी ८० धनुष, १२ वासुपूज्यजीकी ७० धनुष, १३ विमलनाथजीकी ६० धनुष, १४ अनंतनाथजीकी ५० धनुष, १५ धर्मनाथजीकी ४५ धनुष, १६ शांतिनाथजीकी ४० धनुष, १७ कुंथनाथजीकी ३५ धनुष, १८ अरहनाथजीकी ३० धनुष, १६ मल्लिनाथजीकी २५ धनुष, २० मुनिसुव्रतनाथजीकी २० धनुष, २१ नमि 1 "
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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