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वृहज्जैनवाणीसंग्रह
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पत्ता- तुम दयाविशाला सब क्षितिपाला, तुम गुणमाला कंठ घरी ते भव्य विशाला तज जगजाला, नावत भाला मुक्तिवरी ओं ह्रीं श्रीगिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ॥ समाप्ता ॥
१२६ - श्रीचंपापुर सिद्धक्षेत्र पूजा ।
दोहा - उत्सव किय पनवार जहँ, सुरगनयुत हरि आय | जजों सुथल वसुपूज्यसुत, 'चंपापुर हर्षाय ॥१॥
ओं ह्रीं श्रीचंपापुरसिद्धक्षेत्र ! अन्नावतरावतर । संवौषट् । म श्रीचंपापुर सिद्धक्षेत्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ | ठः ठः । ओं ह्रीं श्रीचंपापुरसिद्धक्षेत्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अष्टक | चाल नंदीश्वरपूजनफी ।
सम अमिय विगतत्रस वारि, लै हिमकुंम भरा। लख सुखद त्रिगदहरतार, दे त्रय धार धरा ॥ श्रीवासुपूज्य जिनराय, निर्वृतिथान प्रिया | चंपापुर थल सुखदाय, पूजौं हर्ष हिया ॥ म ह्रीं श्री चंपापुर सिद्धक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि० ॥ कश्मीरी केशर सार, अति ही पवित्र खरी । शीतल चंदनसँग सार लै भव तापहरी || श्री० ॥ चंदनं ॥ मणिद्युतिसम खंड विहीन, तंदुल लै नीके | सौरभयुत नव वर बीन, शालि महा नीके ॥ श्री० ॥ अक्षतान् || ३ || अलि लुभन सुभन हग घाण, सुमन जु सरद्रुमके । लै वाहिम अर्जुनवान, सुमन दमन झुमके | श्री० ॥ पुष्पं ||४|| रस पुरित तुरित पकवान, पक्त्र यथोक्त घृती । क्षुधगदमदप्रदमन जान, लै विध युक्तकृती ॥ श्री० ॥ नैवेद्यं ॥ ५ ॥ तमअज्ञप्रनाशक