________________
Anm~
। ३४ वृहज्जैनवाणीसंग्रह
सुरराज सुमेर न्हवाई । हम पूजत इत सुखपाई ॥२॥ । ओं ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ट्यां जन्ममंगलमंडिताय नेमिनाथजिनेद्राय अध
सित सावनकी छठि प्यारी । तादिन प्रभु दीक्षा धारी॥ प तप घोर वीर तहँ करना । हम पूजत तिनके चरणा ॥३॥
ओं ही श्रावणशुक्लपष्टीदिने दीक्षामंगलप्राप्ताय नैमिनाथजिनेंद्राय अर्ध। । एकम सुदि आश्विन भाषा। तब केवलज्ञान प्रकाशा ।।। । हरिसमवसरण तब कीना। हम पूर्जत इत मुख लीना ॥ . ।ओं ही आश्विनशुक्लाप्रतिपदि केवलज्ञानप्राप्तायनेमिनाथजिनेद्राय अर्ध | |
सित अष्टमि मास आषाढ़ा। तब योग प्रभूने छाडा।। | जिन लई मोक्ष ठकुराई । इत पूजत चरणा भाई ५॥
ओं ही अपाढ़शुक्लषष्ट्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय नेमिनाथजिनेंद्राय अर्थ । । अडिल्ल-कोडि बहत्तरि सप्त सैकड़ा जानिये । मुनिवर मुक्ति
गये तहँ सु प्रमाणिये ।। पूजों तिनके चरण सु मनवचकाका यकै । वसुविध द्रव्य मिलायसुगाय बजायकें ।। पूर्णा ।। * दोहा-सिद्धक्षेत्र गिरनारशुभ, सब जीवन सुखदाय ।
कहों तासु जयमालिका, सुनतहि पाप नशाय ।। पद्धरीछंद-जय सिद्धक्षेत्र तीरथ महान । गिरिनारि सुगिरि ।
उन्नत वखान ।। तहँ झूनागढ़ है नगर सार। सौगष्ट्रदेशके । * मधिविथार ॥ २॥ तिस झूनागढ़से चले सोड। समभूमि
कोस वर तीन होइ ॥ दरवाजेसे चल कोस-आध। इक नदी वहत है जल अगाध ॥३॥ पर्वत उत्तरदक्षिण सु दोय।।
जयमाला