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________________ -A VMN M *HARKKR5425+HARKAR* पृहज्जैनवाणीसंग्रह २५ । *चंदनगारि मिलाय सुगंध हु, ल्याय कटोरीमें धरना । मोह महातममेटनकाज सु चर्चतु हों तुम्हरे चरना।।नेमाचंदन।। * अक्षत उज्वल ल्याय धरों, तहँ पुंज करो मनको हर्षाई।। । देहु अखयपद प्रभु करुणाकर, फेरन या भववासकराई। * नेमिः ॥अक्षतान्।। फूल गुलाब चमेली बेल कदंच सु चंप कबीन सु ल्याई । प्रासुकपुष्प लवंग चढ़ाय सु गाय प्रभू गुणकाम नशाई । नेम० ॥ पुष्पं । नेवज नव्य करों भरथाल सुकंचन भाजनमें धर भाई । मिष्ट मनोहर क्षेपत हो । यह रोग क्षुधा हरियो जिनराई ।नेमानैवेद्य।। धूप दशां-1 *ग सुगंधाई कर खेवहुँ अग्निमॅझार सुहाई। शीघ्रहि अर्ज सुना जिनजी मम कर्म महावन देउ जराई ॥ नेम०॥धूपं ।। ले फल सार सुगंधमई रसनाहद नेत्रनको सुखदाई । क्षेपत। * हो तुम्हरे चरणाप्रभु देहु हमैं शिवकी ठकुराई।नेम०॥फल ले वसु द्रव्य सु अर्घ करों धर थाल सुमध्य महा हरपाई।। पूजत हों तुमरे चरणा हरिये वसुकर्मबली दुखदाईशनेमाअर्थ +दोहा-पूजत हों वसुद्रव्य ले, सिद्धक्षेत्र सुखदाय । निजहितहेतु सुहावनो, पूरण अर्थ चढाय ॥ पूर्णा ॥१०॥ पंचकल्याणक अर्ध । छन्द पाइता। * कार्तिक सुदिकी छठि जानो। गर्भागम तादिन. मानो ॥1 उत इंद्र जजै उस थानी। इत पूजत हम हरषानी ॥१॥ +ओं ह्रीं कार्तिकशुक्लाषष्ट्यां गर्भमंगलकालाय नेमिनाथजिनेंद्राय अर्थ।। श्रावणसुदि छठि सुखकारी । तब जन्म महोत्सव धारी। * --5-47-05- RRA R
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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