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________________ ३३६ बृहज्जैनवाणीसंग्रह नाशकर, पायो सुखको कंद | ललितकूट तैं शिवगये, बंदों शीश नवाय | जिनपद पूजौं भावसों, निजहित अर्घ चढाय ॥ ओं ह्रीं श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रललितकूटतें चंद्रप्रभजिनेन्द्र आदि सुनि चौरासीकोड़ाकोडीबहत्तरकोडिअसीलाख चौरासीहजार पांचसौ पचपन सिद्धपदप्राप्तेभ्यः सिद्धक्षेत्रेभ्यो अयं निर्वपामीति स्वाहा || २ || नं० ७ पुष्पदंत सुप्रभकूट | पद्धरी छंद । AAAAAAAA श्री सुप्रभकूट सु नाम जान । जहँ पुष्पदंतको मुकति थान || मुनि कोडाकोडि कहे जु भाख । नव ऊपर नवथर कहे लाख || शतचारि कहे अरु सहससात । ऋषि अस्सी और कहे विख्यात ॥ मुनि मोक्षगए हनि कर्मजाल | चंदौं कर जोरि नमाय भाल ||५|| ओं ह्रीं श्रीसम्मेद शिखरसिद्वक्षेत्र सुप्रभकूटतें पुष्पदन्तजिनेंद्रादिमुनि एक कोडाकोडी निन्यानवेलाख सातहजार चारसौ अस्सी सिद्धपदप्राप्ते भ्यः सिद्धक्षेत्रेभ्यो अघं ॥ ६ ॥ नं० १२ शीतलनाथ विद्यु तकूट । सुन्दरी छंद । सुभग विद्युतकूट सु जानिये | परम अदभुत तापर मानिये ॥ गये शिवपुर शीतलनाथजी । नमहुं तिन इह करधर माथजी || मुनि जु कोडा कोडि अठारहू । मुनिजु कोडि वियालिस जानहू || कहे और जु लाखबत्तीस जू । सहसव्यालिस कहे यतीश जू ॥ अवर नौसौं पांच जु जानिये | गए मुनि शिवपुरको मानिये ॥ करहिं जे पूजा मन लायकैं | धरहिं जन्म न भवमें आयकै ॥१०॥ ॥ ओं ह्रीं सम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रविद्युतकूटतें श्री शीतलनाथजितेंन्द्रादि एसस
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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