________________
K
AK-
------
--
--
..
.
वृहज्जनवाणीसंग्रह १५ ॥ मोदन करिफै। क्रोधादि चतुष्टय धरिकैं॥४॥ शत आठ 4 जुइमि भेदन । अध कीने परछेदन । तिनकी कहुं कोलों । कहानी। तुम जानत केवलज्ञानी ॥५॥ विपरीत एकांत विन
यके । संशय अज्ञान कुनयके॥ वश होय घोर अप कीने। * वचत नहिं जात कहीने ॥६॥ कुगुरनकी सेवा कीनी । केवल अंदयाकरि भीनी । याविधि मिथ्यात भ्रमायो । चहुंगति । मधि दोष उपायो॥७॥ हिंसा पुनि झूठ जु चोरी । परवनितासों दृग जोरी ।। आरंभपरिग्रह भीनो । पनपाप जु या
विधि कीनो ॥८॥ सपरस रसना घाननको। चखु कान * विषयसेवनको।। बहु कर्म किये मनमानी। कछु न्याय अन्याय
नजानी ॥९॥ फल पंच उदंवर खाए । मधु मांस मद्य चित• चाहे । नहिं अष्टमूलगुणधारी । विसनन सेये दुखकारी ॥१० । दुइवीस अभख जिन गाये । सो भी निशदिन भुंजाये ।। कछु । भेदाभेद न पायो । ज्यों त्योंकरि उदर भरायो॥११॥ * अनंतानु जुबंधी जानो। प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो ॥संज्व
लन चौकरी गुनिये । सब भेद जु षोडश मुनिये ॥१२॥परिहास अरतिरति शोग । भय ग्लानि तिवेद संजोग॥ पनवीस जु भेद भये इम। इनके वश पाप किये हम ॥ १३॥ निद्रा
वश शयन कराई । सुपनेमधि दोष लगाई । फिर जागि विषय-1 पवन धायो । नानाविध विषफल खायो॥१४॥ कियेहार
निहार विहारा । इनमें नहिं जतन विचारा॥ दिन देखी धरी ॥ उठाई। विन शोधी वस्तु जु खाई ॥१५॥ तब ही परमाद ।
*S
HRESARKAR-522
*