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________________ nAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAANA * R -5-22-28 ३३. बृहज्जैनवाणीसंग्रह मुक्ति गये चंदौ नित तास ॥ १४॥ फलहोडी वडगाम * अनूप । पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप ॥ गुरुदत्तादि मुनी- . सुर जहां । मुक्ति गये बंदौं नित तहां ॥ १५ ॥ बाल महा बाल मुनि दोय। नागकुमार मिले त्रय होय ॥ श्रीअष्टा१. पद मुक्तिमझार । ते वंदौं नित सुरत सँभार ॥१६॥ अचला पुरकी दिश ईसान । तहां मेगिरि नाम प्रधान ॥ साढे तीन कोडि मुनिराय । तिनके चरण नमूं चितलाय ॥१७॥ * बसस्थल वनके ढिग होय । पश्चिमदिशा कुंथुगिरि सोय ।। कुलभूषण दिशिभूषण नाम । तिनके चरण करूं प्रणाम॥१८॥ । जसरथराजाके सुत कहे ।देश कलिंग पांचसौ लहे ॥ कोटि। शिला मुनि कोटि प्रमान । वंदन करूं जोर जुगपान ॥१९॥ * समवसरण श्रीपार्वजिनंद । रेसिंदीगिरि नयनानंद ॥ * वरदत्तादि पंच ऋषिराज । ते बंदौं नित धरम जिहाज ॥२०॥ तीनलोकके तीरथ जहां। नित प्रति वंदन कीजे तहां ॥ मनवचकायसहित सिर नाय । वंदन करहिं भविक गुणगाय । ॥ २१ ॥ संवत सतरहसौ इकताल। अश्विन सुदि दशमी * सुविशाल । 'भैया' वंदन करहिं त्रिकाल | जय निर्वाणकांड गुणमाल ॥ २ ॥ इति समाप्तं ॥ १२४-श्रीसम्मेदाचलपूजा। दोहा-सिद्धक्षेत्र तीरथ परम, है उतकृष्ट सुथान । शिखरसमेद सदा नमों, होय पापकी हान ॥१॥ AK KK SRKERS *
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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