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________________ वृहज्जेनवाणीसंग्रह wwwww、 www wwwww ३२६ wwwwwwwwwww wwwwwwwww वरदतराय रु इंद मुनिंद | सायरदत्त आदिगुणवृंद || नगरतारवर मुनि उठकोडि | बंदौ भावसहित कर जोडि ॥ ४ ॥ श्रीगिरनार शिखर विख्यात | कोडि बहत्तर अरु सौ सात || संबु प्रदुम्नकुमर द्वै माय । अनिरुध आदि नमूं ततु पाय ॥ ५ ॥ रामचंद्र के सुत द्वै वीर | लाडनरिंद आदि गुणधीर || पांचकोडि मुनि मुक्ति मझार | पावागिरि बंदौ निरधार ॥६॥ पांडव तीन द्रविडराजान | आठकोडि मुनि मुकति पयान || श्रीशत्रुंजय गिरिके सीस | भावसहित बंदौ निशदीस ||७|| जे बलभद्र मुकतिमै गये । आठको डिमुनि और भये || श्री गजपंथ शिखर सुविशाल । तिनके चरण नमूं तिहुंकाल || ८ || राम हणू सुग्रीव सुडील | गवगवाख्य नील महानील || कोडि निन्याणव मुक्तिपयान | तुंगीगिरि बंदौं धरि ध्यान ॥ ९ ॥ नंग अनंग कुमार सुजान | पांचकोडि अरु अर्ध प्रमान ॥ मुक्ति गये सोनागिरिशीश । ते बंदौ त्रिभुवनपति ईस || १० || रावणके सुत आदिकुमार । मुक्ति गये रेवातट सार || कोडि पंच अरु लाख पचास । ते बंदौ धरि परम हुलास ॥। ११ रेवानदी सिद्धवरकूट | पश्चिम दिशा देह जहाँ छूट || द्वै चक्री दश कामकुमार | ऊठकोडि बंदों भव पार || १२ || बड़वानी वडनयर सुचंग । दक्षिण दिश गिरिचूल उतंग || इंद्रजीत अरु कुंभ जु कर्ण | ते बंदौ भवसायवर्ण ॥ सुवरण भद्र आदि सुनि । पावागिरिवर शिखरमझार || चलना नदीतीरके पास । 个 से दूर से को
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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