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________________ NAAMANANAMANAAN AAAAAAAAAAAAAMAR * वृहज्जैनवाणीसंग्रह ३२१ । * नदौं ॥२॥ बंदौं अजित अजितपददाता। वंदौं संभव भवदुख घाता ॥ बदौं अभिनंदन गणनायक । बंदौं सुमति सुमतिके । दायक॥बंदौं पदम मुकतिपदमाकर । बंदी सुपार्स आशपासाहर॥वंदौं चंद्रमभ प्रभुचंदा। बंदौं सुविधि सुविधिनिधिकं- १ दा॥ बंदो शीतल अघतपशीतल । बंदो श्रियांस श्रियांस मही* तल ॥ बंदौं विमल विमल उपयोगी। बंदौं अनंत अनंतसुभोगीna बदौं धर्म धर्मविसतारा । वंदौं शांति शांतिमनधारा ॥ बंदौं । * कुंथु कुंथुरखवालं । बौं अर अरिहरगुणमालं ॥६॥ बंदौं मल्लिक काममलचूरन । बंदौं मुनिसुव्रत व्रतपूरन ॥ बंदौ नमि जिन * नमितसुरासुर ।बंदौं पास पासभ्रमजगहर ॥७॥ बीसों सिद्ध भूमि जा ऊपर । शिखरसमेदमहागिरि भूपर ।। एक बार। । वंदै जो कोई । ताहि नरकपशुगति नहिं होई ।।८॥ नरपति नृपःसुरशक्र कहावै । तिहुँजग भोग भोगि शिव पावै ॥ । विधनविनाशक मंगलकारी । गुणविलास बंदौं नरनारी ॥ पत्ता-जो तीरथ जावै, पाप मिटावै, ध्यावै गावै भगति करै।। ताको जस कहिये, संपति लहिये, गिरिक गुणको बुध उचरै।। ओं ही चतुर्विंशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्योऽय निर्वपामीति स्वाहा ।।। (अर्धके बाद विसर्जन करना चाहिये) १२०-अथ संस्कृत स्वयंभूस्तोत्रम् । येन स्वयंबोधमयेन लोका आश्वासिता केचन चित्तकायें। प्रबोधिता केचन मोक्षमार्गे तमादिनाथं प्रणमामि नित्यम् ॥ * इन्द्रादिभिः क्षीरसमुद्रतोयैः संस्नापितो मेरुगिरौ जिनेन्द्रः।। ----- --
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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