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________________ -- - R RAANHenr- NA - nnnnArrrrena * -- * ३२० वृहज्जैनवाणीसग्रह *ओं ह्रीं चतुर्विशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्रेम्यो जलं निवपामीति स्वाहा ॥ । केसर कपूर सुगंध चंदन, सलिल शीतल विस्त । भवपाप । को संताप मेटो, जोरकर विनती करौं । सम्मे० ॥चंदन।। मोती समान अखंड तंदुल, अमल आनंदधरि तरौं । औगुन । हरौ गुन करौ हमको, जोरकर विनती करौं ।सम्मे०||अक्षत। * शुभफूलरास सुवासरासित, खेद सव मनको हरौं । दुखधाम है काम विनाश मेरो, जोरकर विनती करौं । सम्मे० (पुष्पा नेवज अनेक प्रकार जोग, मनोग धरि भय परिहरौं । यह । भूख दूषन टार प्रभुजी, जोरकर विनती करौं ।सम्मेलनैवेद्या।। दीपक प्रकाश उजास उज्जल, तिमिरसेती नहिं डरौं । संशय- विमोहविभर्म-तमहर, जोर कर विनती करौं ।सम्मे०गादीप * शुभ धूप परम अनूप पावन, भाव पावन आचरौं । सव करमपुंज जलाय दीजे, जोर कर विनती करौं । सम्मे० ॥धूप। बहु फल मंगाय चढाय उत्तम, चारगतिसों निरवरौं । निहचै मुकतिफल देहु मोकों, जोरकर विनती करौ। सम्मेगाफलं। * जल गंध अक्षत फूल चरु फल, दीप धूपायन धरौं । धानत' * करो निरभय जगतते, ज़ोरकर विनती करौ । सम्मे०॥अर्थ।। 'जयमाला। सोरठा-श्रीचौवीस जिनेश, गिरिकैलासादिक नमो। तीरथ महाप्रदेश, महापुरुष निरवानः ॥९॥ । चौपाई-लमों रिषभ कैलास पहारं । नेमिनाथ गिरनार । निहारं ॥ वासुपूज्य चंपापुर वंदौं। सन्मति पावापुर अभि
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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