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________________ * H * AR-540522-2 वृहज्जनवाणीसंग्रह wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww. उपसर्ग:सहित ममता निवार॥१३॥ जय जपत तिहारो नाम * कोय। लख पुत्रपौत्र कुलवृद्धि होय ॥ जय भरे लक्ष अति शय भंडार।दारिद्रतनो दुख होय छार ।। जय चोर अग्नि डांकिन पिशाच । अरु ईति भीति सब नसत सांच ॥ जय तुम सुमरत सुख लहत लोक । सुर असुर नवत पद देत घोक ।। रोला-ये सातों मुनिराज महातप लक्ष्मीधारी। परम पूज्य पद धरै सकल जगके हितकारी॥ जो मनवचतन शुद्ध होय सेवै औ ध्यावै । सो जन मनरंगलाल अष्ट ऋद्धिनकौं पावै ॥ * दोहा-नमन करत चरनन परत, अहो गरीबनिवाज। पंच परावर्तननित, निरवारो ऋषिराज ॥ *ओं ही श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्यो पुर्णायं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ११९-चतुर्विशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्रपूजा। । सोरठा-परम पूज्य चौबीस, जिहँ जिहँ थानक शिव गये। सिद्धभूमि निशदीस, मनवचतन पूजा करौं ॥१॥ __ओं ह्रीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि ! अत्र अवतरत अवतरत । * संवौषट् । ओं ही चतुर्विंशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्राणि ! अत्र तिष्ठत अतिष्ठन । ठः ठः । ओं ही चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि ! अत्र मम । सन्निहितो भवत भवत वषट् । गीता छंद-शुचि क्षीरदधिसम नीर निरमल, कनकझारीमें । भरौं । संसार पार उतार स्वामी, जोर कर विनती करौं । । सम्मेदगढ़ गिरनार चंपा, पावापुरि कैलाशकों। पूजौं सदा। चौबीसजिन, निर्वाणभूमि निवासकों ॥१॥ *- * -*- *-*- *-* - *
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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