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वृहज्जैनवाणीसंग्रह ३०७ तारो घड़ी ना लगाई। सहे अंजना चंदना दुःख जेते । गये भाग सारे जरा नाम लेते ॥ ८॥ घडे बीच में सासुने नाग डारौ । भलौ नाम तेरो जु सोमा सम्हारौ ॥ गई। काडने को भई फूलमाला। भई है विख्यातं सबै दुःख *टाला ॥९॥ इन्हें आदि दैकै कहालौं वखानौ ।।सुनौ वृद्धभारी तिहूलोक जानौ ॥ अजी नाथ ! मेरी जरा ओर हेरो। वडी नाद तेरी रती बोझ मेरो ॥१०॥ गहो हाथ स्वामी! करो वेग पारा । कहूं क्या अबै आपनी मैं पुकारा ।। सबै ज्ञान के बीच भाषी तुम्हारे। करो देर नाही अहो संतप्यारे । पत्ता-श्रीशांति तुम्हारी, कीरति भारी, सुरनरनारी गुणमाला । 'बखतावर' ध्यावै, रतन सुगावें, मम दुखदारिद * सब टाला ॥१२॥ *ओं ही श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये पूर्णाधं ॥ । अजी एरानंद, छबि लखत हैं आप 'अरनं । धेरै लज्जा
भारी, करत थुति सो लाग चरनं ॥ करै सेवा सोई, लहत सुख * है सार छिनमें। घने दीना तारे, हम चहत हैं बास तिनमें ॥
(इत्याशीर्वादः) ११६-श्रीपार्श्वनाथ जिनपूजा। गीता-वर सुरग आनतको विहाय सुमात वोमा सुत भये। विस्वसेनके पारस जिनेसुर चरन तिनके सुर नये ॥ नव हाथ उन्नत तन विराजे उरग लच्छन अतिलसै । थापूं तुम्हे जिन आय तिष्ठहु करम मेरे सब-नसैं॥ ।
ओं ह्रीं श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्र ! अन्न अवतर अवतर संवौषट।। * *
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