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३०८ वृहज्जैनवाणीसंग्रह। *ओं ही श्रीपार्श्वनाथजिनेंदू ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। *ओं ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेद् ! अत्र मम सन्निहित्तो भव भव वपट्। . * छन्द नाराच-क्षीर सोमके समान अंबुसार लाइये। । हेमपात्र धारके सु आपको चढ़ाइये ॥ पार्श्वनाथदेव सेव ।
आपकी करूँ सदा। दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा।
ओं ही श्रीपार्श्वनायजिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व० ॥ * चन्दनादि केशरादि स्वच्छ गंध लीजिये । * आप चर्न चर्च मोहतापको हनीजिये ।पार्श्वनाथ ॥चंदन।।
फेन चंदके समान अक्षतें मँगाइकै । * पादके समीप सार पूजकौं रचाइकै ॥पार्श्वनाथ०॥अक्षतान्।।
केवडा गुलाब और केतुकी चुनाइये। धार चर्नके समीप कामको नसाइये । पार्श्वनाथ० ॥पुष्प।। घेवरादि वावरादि मिष्ट सर्पिमें सने ।
आप चर्नचर्चते क्षुधादि रोगको हने । पार्श्वनाथ रानैवेद्य। * लाय रत्न दीपको सनेह पूरिकै भरूँ ।
वातिका कपूरवारि मोहध्वांतको हरूँ । पार्श्वनाथ० ॥दीप।। धूप गंध लेयके सु अग्नि संग जारिये ।
तास धूपके सुसंग अष्टकर्म वारिये । पार्श्वनाथ० ॥धूपं ॥ । खारिकादि चिर्भटादि रत्नथालमें धरूँ । * हर्षधारके जजू सुमोक्ष सुक्खकू वरूं । पार्श्वनाथ० ॥ फलं॥
नीर गंध अक्षतं सुपुष्प चारु लीजिये।
दीप धूप श्रीफलादि अर्घतें जजीजिये ।पार्श्वनाथ ॥ * -
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