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________________ Mom Anm nannr RANnAAAAAAAANAANAANAAAAAAAAAAAAAPhorn वृहज्जैनवाणीसंग्रह जयमाला। छप्पय-भये आप जिनदेव जगतमें सुख विस्तारे । तारे भव्य अनेक तिन्होंके संकट टारे ॥ टारे आठों कर्म मोक्षसुख तिनको भारी। भारी विरद निहार लही भै शरण तिहारी ॥ तिहारे चरणन नमू, दुख दारिद संताप हर। हर सकल कर्म छिन एकमें,शांति जिनेश्वर शांतिक दोहा-सारग लक्षण चरनमें, उन्नत धनु चालीस। ___ हाटकवर्ण शरीरद्युति, नौं शांति जुगईश ॥२॥ * छंद भुजंगप्रयात-प्रभू आपने सर्वके फंद तोड़े। गिनाऊ, कहूं मै तिन्हों नाम थोड़े ।। पडौ अंबुधे बीच श्रीपालराई ।। । जपो नाम तेरो भये थे सहाई ॥३॥ धरौ रायने शेठको सलिकापै । जपी आपके नामकी सार जा ॥ भये थे सहाई । । तबै देव आए । करी फूलवर्षा सुवृष्टिबढाये॥४॥ जबै लाखके धाम वह्नि प्रजारी। भयो पांडकापै महाकष्ट भारी॥ , जबै नाम तेरे तनी टेर कीनी । करी थी विदुरने वहीं राह । दीनी ॥५|| हरी द्रोपदी धातुके खंडमाहीं । तुम्हीं हां सहायी भला और नाहीं ॥ लियो नाम तेरो भलौ शील पालौ । वचाई तहातै सबै दुःख टालौ ॥६॥ जबै जानकी रामने जो निकारी । धरै गर्भको भार उद्यान डारी ॥ रटौ । नाम तेरो सबै सुक्खदायी । करी दूर पीडा सु छिन ना लगाई ॥७॥ विसन सात सेवै करै तस्कराई। सु अंजन-जु । * * *** *
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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