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________________ XRAKARE-SHAKAKK वृहज्जैनवाणीसग्रह NAMANAAMAmar NAAHARANA..Mann (चाल-त्रिभुवनगुरु स्वामीजीकी) जय अनंत जिनेस्वरजी, पुष्पोत्तरतै स्वरजी, सिंघसेन नर सुरके चय सुत भये जी ॥ 'सूर्योदे' माताजी जग पुण्य वि। ख्याताजी, तिनके जगत्राता गर्भविौं थये जी ।।२।। कातिक * अंधियारीजी, परिवा अविकारीजी, साकेत मझारि कल्याणक हरि कियोजी । षटमास अगारेजी, मणि स्वर्ण घनेरेजी, * वरखे नृपकेरे मंदिर धन जयोजी ॥३॥ द्वादशि अधियारीजी । जनमे हितकारीजी, प्रभु जेठमझारि सुरासुर आयकैंजी।। सुरगिरि लै आयेजी, भव मंगल गायेजी, अभिषेक रचाये । * पूजे ध्यायकैंजी ॥४॥ फिर पितुघर लायेजी, नचि तूर वजा येजी, लखि अंग नमाये मातपिता तवैजी । तन हेम महा * छविजी, पंचास धन रविजी, लखि तीस कहे कवि आयु भई । । सबैजी ॥५॥ नृपपदवी धारीजी, लखि पणदह सारीजी, सब । अनीति विचारि तपोवन• गयेजी, बदि जेठ दुवादसिजी, तप देखि स्वरा रिषिजी, पद पूजि नये नसि पाप सबै गये जी॥६॥ षष्टम करि पूरोजी, भोजन हित सरोजी, पुर धर्म * सनरो आवत देखिकैंजी। नव भक्तिथकी पयजी, विसाख तहां दयजी, मणिविष्टि अखय करि सुरगण पेखिकैंजी ॥७॥ धरि ध्यान सुकल तबजी, चउ घाति हनै जवजी, सुर आय मिले सब ज्ञान कल्याण ही जी। बदि चैत अमावसिजी, जखि भुक्ति तुहे वसिजी, समवादि रच्यौ तसु उपमा भी। नहींजी। समवादि जिते भविजी, सुनि धर्म तिरे साजी, *HARASHTRA
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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