________________
wwwww urv...
बृहज्जैनवाणीसंग्रह ३११ * चंद' इम करै । श्रीअनंतनाथके चरन जुग, बहुविधि * अरचे शिव बरै॥ ओं ही श्री अनंतननाथजिनेंदाय अनयंपदप्राप्तये अर्धं निर्वपामीति ।
___ पंचकल्याणक। दोहा-पुष्पोत्तर” चय लियो, 'सूर्यादे' उर आय ।
कातिक पडिवा कृष्ण ही, जजहूं तुर बजाय ॥१॥ ओं ही कार्तिककृष्णप्रतिपदायाँ गर्भमङ्गलमंडिताय श्रोअनंत० अर्ध । जेठ असित द्वादशिविष, जनम सुराधिप जान। १ सनपन करि सुरगिर जजे, जम्हू जनमकल्यान ॥२॥ *ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां जन्ममङ्गलमंडिताय श्रीअनंत० अर्ध । 1 जगतराज्य तृणवत तज्यो, द्वादशि जेठ असेत । * लोकांतिक सुरपति जजे, मै जजहूं शिवहेत ॥३॥
ओ ही ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां तपोमङ्गलमंडिताय श्रीअनंत० अर्घ॥ १ चैत अमावसि अरि हने, घातिकर्म दुखदाय। कह्यो धर्म केवलि भये, जजू चरण सुखदाय ॥४॥
ओं ही चैत्रकृष्णामावस्यां ज्ञानमङ्गलमंडिताय श्रीअनन्त० अर्घ॥ । । चैत अमावसि शिव गये, हनि अघाति भगवान ।। * सुरनरखगपति मिलि जजे, जजडं मोक्षकल्यान ॥ ५॥ *ओं ह्रीं चत्रकृष्णामवास्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्रीअनंत ० अर्घ ॥
जयमाला। * दोहा-काल अनंताअनंत भव, जीव अनंतानंत। .
जिन अनंत उतपति व्यय ध्रुव कही, नमूऽनंत भगवंत ॥