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________________ * KAR+R ASANS- S ER * maraarur AnmoAAAAAAAAAAANI ANA वृहज्जैनवाणीसंग्रह पाप नाश कारया ॥ अनंतनाथ पाय सेव मोख्य सौख्य दाय है। अनंतकाल श्रमज्वाल पूजत नसाय है ॥१॥ ओं ही श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्व० ॥ कुंकुमादि चंदनादि गंध शीत कारया । संभवेन अंतकेन । * भूरि ताप हारया।। अनंतनाथ० ॥चन्दन।। स्वेत इंदु कुंद हार खंड ना अखित्तही। दुर्ति खंडकार पुंज धारिये पवित्त ही॥ अनंतनाथ० ॥ अक्षतान् ॥ * सरोपुनीत पुष्पसार पंथ वर्ण ल्यावही । गंध लुब्ध भंगवृंद शब्द धारि आवही ॥ अनंतनाथ० ॥ पुष्पं ॥ * मोदकादि घेवरादि मिष्ट स्वादसार थी। हेमथाल धारि । भव्य दुष्ट भूख टारही ॥ अनंतनाथ० ॥ नैवेद्यं ।। रत्न दीप ते न भान हेमपात्र धारिये । भवांधकार दुःखमार के मूल निवारिये ॥ अनंतनाथ० ॥ दीपं ॥ देवदारु कृष्ण सार चंदनादि ल्यावही । दशांग धूप धूम्रगंध । * गवृंद धावही ॥ अनंतनाथ० ॥ धूयं ॥ * श्रीफलादि खारिकादि हेमथाल में भरे । सुष्ट मिष्ट गंधसार चक्खि नासिका हरे॥ अनंतनाथ ॥ फलं ॥ छप्पय। . सलिल शीत अति स्वच्छ मिष्ट चंदन मलियागर । तंदुल। सोम समान पुष्प सुरतरुके ला वर ।। चरु उत्तम अति मिष्ट* पुष्ट रसना मनभावन । मणि दीपक तमहरन धूप कृष्ना गर पावन । लहि फल उत्तम कणथाल भरि, अरप'राम* R-52452- *
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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