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बृहज्जैनवाणीसंग्रह ॥१०॥ तिहारो लखे रूप ज्यों दौसदेवा । लगें भोरके चंदसे। . जे कुदेवा । सुचन्द्र० ॥ ११ ॥ भलीभांति जानी तिहारी।
सुरीती । भई मोर जीमैं बड़ीसो प्रतीती ॥सुचन्द्र० ॥१२॥ । भयौ सौख्य जो मा कहौ नाहिं जाई । जनौ आजही सिद्धि
की ऋद्धि पाई । सुचन्द्र० ॥१३॥ करूँ वीनती मै दोऊ * हाथ जोरी। बड़ाई करूं सो सबै नाथ थोरी ॥सुचंद्र०॥१५॥ । थके जो गणी चारिहू ज्ञान धारे । कहा और को पार पावें विचारे ॥सुचन्द्र० ॥१५॥ पत्ता-चन्द्रप्रभ नामा गुणकी दामा पढेऽअभिरामा धरि मनहीं। अंतक परछाही परिहै नाहीं तापर कबहूं झूठ नहीं।। दोहा-पंथीप्रभु मंथीमथन कथन तुम्हार अपार ।
करो दया सबपै प्रभो जासें पावें पार ॥ ' (इत्याशीर्वादः)
११४-श्रीअनंतनाथ जिनपूजा। * अडिल्ल-बाझि अभ्यंतर त्यागि परिग्रह जति भये । बहुजन हित शिवपंथ दिखायो हरि नये ॥ ऐसे अनंत जिनेश पाय ।
नमि हूं सदा । आह्वाननविधि करूं त्रिविध करिके मुदा ॥ *ओं ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेंद्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । 1ओं ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । *ओं ही श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
नाराच छंद क्षीर नीर हीर गौर सोम शीत धारया । मिश्र गंध रत्न भंग ।
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