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________________ AAMANAANAN AAMANANARAAAAA AAAAAAAA * 225- 25 - * १ २७२. वृहज्जैनवाणीसंग्रह मणिभास, ण वि भासिज्जइ परदुहपयास ॥ ४॥ परवाहा" यर भासहु ण भव्य, सच्चु णि छंडेउ विगयगव्य । सच्चु । जि परमप्पा अस्थि एक्कु, सो भावहु भवतमदलण अक्छु। । संधिज्जइ मुणिणा वयणगुत्ति, जखण किट्टइ संसार अति।। * धत्ता--सच्चु जि धम्मफलेण केवलणाण वहेइ थणु ।। तं पालहु भो भव्य ! भणहु ण अलियउ इह वयणु ॥ ओं ह सत्यव मांगायाचं निर्गपामीति स्वाहा। वाह्याभ्यंतरैश्वापि मनोवाकायशुद्धिभिः । शुचित्वेन सदा भाव्यं पापभीतैः सुश्रावकैः ॥९॥ *ओं ही परब्रह्मणे उत्तमशौचधर्मा गाय जलाद्यर्ण निवे० ॥ सच्चु जि धम्मंगो तं जि अभंगो भिणंगो उपओग्गमई। जरमरणविणासणु तिजयपयासणु काइज्जइ अहिणिसु जि थुऊ ॥ धम्म सउच्च होइ मणसुद्धिय, धम्म सउच्च वयणधण गिद्धिये । धम्म सउच्च लोह वजंतउ, धम्म सउच्च सुतव । * पहिजंतउ ॥ धम्म सउच्च वंभवयधारणु, धम्म सउच्च मयहपणिवारणु । धम्म सउच्च जिणायमभणणे, धम्म सउच्च सुगुण * अणुमणणे ॥ धम्म सउच्च सल्लकयचाए, धम्म सउच्चु । जि णिम्मलभाए । धम्म सउच्च कसाय अहावे, धम्म सउ च्च ण लिप्पइ पावे ।। अहवा जिणवर पूज विहाणे, णिम्मल - फासेयजलकयण्हाणे । तं पि स उच्च गिहत्थउ भासइ, गवि । मुणिवरह कहिउलोयासिउ॥ पत्ता-भव मुणि वि अणिच्चो धम्म सउच्चउ पालिज्जा
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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