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________________ * RKA R-* बृहज्जैनवाणीसंग्रह २५ गाथा-कंसालतालतिवली, झल्लरभर मेरिवेणुविण्णाओ। वजंति भावसहिया भव्वेहि णउज्जिया सव्वे ।। . छंद-सव्वदव्वेहिं भव्वेहिं करताडियं, सद्दए संझिगणझिगण-* णिद्धाडयं । गिझिनिझं झिगिनिझं वज्जये झल्लरी, गच्चये इंद इंदायणी सुंदरी। णयणकज्जलसलायाम दिण्णय, हेम-1 है हीरालय कुंडलं कंकणं । झंझणं झंकरं तं पिये णेवरं, जिणघ* आरत्तियं जोइयं सुंदरं ॥ दिहिणासनि अंगुलियदावंतिया, खिणहिं खिण सिंणहिं जिणबिंब जोइत्तिया ॥ णारिणच्चंति गायंति कोइलसुरं, जिणघ० ॥ रुणुझुणकारणे वरपकर-1 कंकणं, गाइ जेपंति जिणणाहवे बहुगुणं ।। जुवइ णच्चंति सुमरति ण उणियघरंजिणधारत्तियं जोइयं सुंदरं । कंठकदलीह। मणिहार झुल्लंतऊ, जिणइ थुइ थुई सोणाय संतुहऊ। विविह* कोऊहलं रयहि णाराधरं, जिणघ आरत्तिय जोइयं सुंदरं ॥१७॥ १ घत्ता-आरत्तिय जोवइ कम्मइ धोवइ, सग्गावग्ग हलहु लहइ।। जंजमण भावइ तं सुह पावइ, दीण विकासुण भासुणइ॥ ओं ह्रीं श्रीनन्दीश्वरदीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपंचाशजिनालयेभ्यो अध्य । यावंति जिनचैत्यानि, विद्यते भुवनत्रये। तावंति सततं भक्त्या, त्रिःपरीत्य नमाम्यहं (इत्याशीर्वादः)। १ १०५-श्रीनंदीश्वरद्वीप[अष्टाहिका]पूजा भाषा अडिल्ल-सरब परवमें बड़ो अठाई परब है, नंदीश्वर । * सुर जाहिं लेय वसु दरय है। हमें सकति सो नाहिं इहां करि थापना, पूजें जिनग्रह प्रतिमा है हित आफ्ना ॥१॥ * ओं ही श्रीनन्दीश्वरद्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमा *-- E KX
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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