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________________ * HARKHA* AAVA बृहज्जैनवाणीसंग्रह * : 'श्रीभामंडलचामरैः सुरचितैः चन्द्रोपकरणादिभिः ॥ : त्रैकाल्येवरपुष्पजाप्यजपनैजैनाकरोत्वय॑ता । .. भव्यैर्दीनपरायणैः कृतदयैः पुष्पांजलि शुद्धये ॥७॥ है, ओं ही विद्युन्मालिमेरुसम्बन्धिभद्रंशाल-नन्दन-सौमनस-पांडुकवनसम्बे-1 *न्धिपूर्वपश्चिमोत्तरस्थजिनचैत्यालयस्थजिनविम्वेभ्यों अर्धे निर्व० ॥ ॥ सर्वत्रताधिपंसारं सर्वसौख्यकरं सतां। . . पुष्पांजलिंबतं पुष्याधुष्माकं शाश्वतीं श्रियं ॥(इत्याशीर्वादः) । विधुवसुरसचंद्रांकः प्रयुक्तेकृतार्चा शरदि नभसिमासेरत्नचंद्र-1 क चतुर्था । धवलभृगुसुवारे सांगवादे पुरेत्र जिनवृषगगला*दिश्रावकादेशतोऽव्यात् ।। (इत्याशीर्वादः) ... १०३-अथ पंचमेरुपूजा भाषा। गीताछंद-तीर्थकरोंके न्हवनजलतें, भये तीरथ शर्मदा।। । तातै प्रदच्छन देत सुरगन, पंचमेरनकी सदा ।। दो जलधि । , ढाईदीपमें सब, गनतमूल विराजही। पूजौं असी जिनधाम प्रतिमा, होहि सुख, दुख भाजही ॥१॥ ओं ही पंचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र अवतर अवतर 'संवौषट् । ओं ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमा । समूह ! अन्त्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः । ओं ही पंचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्याका लयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अन्न मम सन्निहितो भव भव वषट् । . * चौपाई-सीतलमिष्टसुवास मिलाय, जलसौं पूर्जी श्रीजिनराय।। महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥..
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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