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________________ 424ক* वृहज्जैनवाणीसंग्रह सौरभ्याहृतसद्गंधसारयाजलधारया । अचलमेरुजिनेंद्राय जराजन्मविनाशिने ॥ जलं ॥ चारुचंदवनकर्पूरकाश्मीरादिविलेपनैः । अचलमे ० ॥ चंदनं ॥ अक्षतैरक्षतानंदसुखध्यान विधानकैः ॥ अचल० || अक्षतं ॥ जातिकुंदादिराजी व चंपकानेकपल्लवैः । अचलमे० ॥ पुष्पं ॥ खाद्यस्वाद्यपदैः स्वाद्यैः सन्नाढ्यैः सुकृतैरिव | अचल || नैवेद्य || दशाग्रैः प्रस्फुरद्दीपैदींपैः पुण्यजनैरिव । अचल० || दीपं ॥ धूपैः संधूपितानेककर्मभिर्धूपदा यिनैः || अचल ० ॥ धूपं ॥ -नारिकेलादिभिः पुंगैः फलैः पुण्यजनैरिव । अचल० ॥ फलं ॥ जलगंधाक्षता नेकपुष्पनैवेद्यदीपकैः । अचल० || अ || २४२ अथ जयमाला | सिरिसंताने रिसह जिणजाह, अजित जिणंद जिगदह पय कमलो । इह कुसुमांजलि होइ मनोहर मेलहिया, गिरिकैलासे जापहारे मेलहिया ॥१॥ संभवजिण सेवंतिसही, अहि अहिनंदन मेहजिणंदह पयकमलो । इह कुसुमांजलि ० ॥ २ ॥ सुमति जे सुमत जेहुजिण, पदमप्पहजिन हेद जिणंदह पयकमलो । इह कुसुमांजलि ० || ३ || मंदारिहि सुपासजिन, चंदप्पइ चंपेह जिणंदह पयकमलो | इह कुसु० ||४|| पुष्पदंत परमेष्ठिजिन, सीतल सीय जिणंद जिणंदह पयकमलो । इह कुसु० ॥ ५ ॥ जिणश्रेयांसह असोयपही, वासुपूज्यवडलेह जिगदह पयकमलो || इह० ||६|| विमलभंडारो सुरतरही, शुकलवेहि जिणंद जिणंदह पयकमलो | इह० || ७ ||
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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