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वृहज्जैनवाणीसंग्रह महान, भूख-विथा जुहने ॥ झलकै सब एकहि बार, ज्ञेय कहे । जितने । यह सूक्षमता गुण सार, सिद्धनकौं पूजौं । नैवेद्य॥ 1. दीपककी जोति जगाय, सिद्धनकौं पूजौं। कर आरंति सनमुख
जाय, निरभय पद हूजौं ॥ कछु घाटि न बाधिप्रमाण, गुरुलघु। * गुन राखौ हम शीस नवावत आन तुम गुण मुख भाखौ। दीपं
वर धूप सुदशविध लाय, दश दिश गंधवरै । वसु करम जरावत जाय, मानौ नृत्य करै । इक सिद्धमै सिद्ध अनंत, सत्ता। सब पायें । यह अवगाहन गुण संत, सिद्धनके गावै ॥ धूपं । लै फल उत्कृष्ट महान, सिद्धनको पूजौ । लहि मोक्ष परमसुख
थान, प्रभु सम तुम हूजौ ॥ यह गुणवाधाकरि हीन, बाधा " नास भई। सुख अव्यावाध सुचीन,शिवसुंदरि सु लई । फलंग
जल फल भरि कंचन थाल, अरचन करजोरी । तुम
सुनियौ दीनदयाल, विनती है मोरी ॥ करमादिक दुष्ट • महान, इनकौं दूरि कर । तुम सिद्ध महामुख दान, भवभव, दुःख हरौ । अध्ये॥
अथ जयमाला। दोहा--नमौं सिद्ध परमातमा, अदभुत परम रसाल।। तिन-गुण अगम अपार है, सरस रची जयमाल ॥१॥
छन्द पद्धरी--जय जय श्रीसिद्धनकौं प्रणाम । जय शिवसुख-सागरके सुधाम । जय बलि बलि जात सुरेश जान । जय पूजत तनमन हरष आन ॥२॥ जय छायकगुण सम्यक्त्वलीन । जय केवलज्ञान सगुण नवीन । जय लोका